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Up Kiran, Digital Desk: संजीव चतुर्वेदी 2002 बैच के IFS अधिकारी उत्तराखंड कैडर से जुड़े हैं और उन्होंने सरकारी सेवा में भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनी अडिग लड़ाई के लिए देशभर में खास पहचान बनाई है।
21 दिसंबर 1974 को जन्मे संजीव ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई उत्तर प्रदेश से पूरी की और 1995 में मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (MNNIT) प्रयागराज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद भी उनका लक्ष्य देश की सेवा करना था इसलिए उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू की और 2002 में IFS अधिकारी के रूप में चुने गए।
200 से ज्यादा भ्रष्टाचार के मामले कर चुके हैं उजागर
संजीव के कैरियर की शुरुआत इंदिरा गांधी नेशनल फॉरेस्ट अकादमी देहरादून में दो साल की कठोर ट्रेनिंग से हुई जहां उन्होंने वन प्रबंधन वन्यजीव संरक्षण और प्रशासनिक कार्यों का प्रशिक्षण प्राप्त किया। हरियाणा कैडर में 2005 से 2012 तक काम करने के दौरान उन्होंने सरकारी फंडों के दुरुपयोग और गड़बड़ियों का खुलासा किया खासकर हिसार और झज्जर जिलों में। इसी कारण उन्हें बार-बार ट्रांसफर किया गया और कई बार उनकी सेवा स्थगित भी हुई। बावजूद इसके उन्होंने भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने से पीछे नहीं हटे। 2012 से 2016 के बीच AIIMS में 200 से अधिक भ्रष्टाचार के मामले उजागर कर उन्होंने रामोन मैग्सेसे पुरस्कार भी जीता।
संजीव की प्रतिबद्धता और साहस की कीमत उन्हें कई बार चुकानी पड़ी। लगातार ट्रांसफर सस्पेंशन और अदालत के मुकदमों का सामना करना पड़ा। नवंबर 2023 में संजीव ने कैट जज मनीष गर्ग के विरुद्ध आपराधिक मानहानि का केस दर्ज किया जिस कारण सुनवाई में देरी हुई। सुनवाई कर रही जज नेहा कुशवाहा ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया क्योंकि उनके पारिवारिक संबंध जज डीएस महरा से थे जो मामले की सुनवाई में थे। इसके बाद नवंबर 2024 में संजीव ने जज महरा के विरुद्ध भी मानहानि याचिका दाखिल की क्योंकि महरा की बेंच ने उन्हें नोटिस जारी किया था।
यह मामला अब तक न्यायिक प्रक्रिया में उलझा हुआ है और 2013 से अब तक 14 जज इस केस से हट चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रंजन गोगोई और यूयू ललित ने भी इस मामले में जांच से दूरी बनाई। 2018 में शिमला कोर्ट के एक जज ने भी मानहानि मामले से खुद को अलग किया। 2019 में कैट के चेयरमैन जस्टिस नरसिम्हन रेड्डी ने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए हटने का फैसला लिया। फरवरी 2025 में कैट की दो अन्य जजों ने बिना कोई स्पष्ट कारण बताए मामले से अपना नाम वापस ले लिया।
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 2018 में आदेश दिया था कि संजीव चतुर्वेदी के सेवा संबंधी मामले केवल नैनीताल बेंच में ही सुने जाएं। इसके साथ ही केंद्र सरकार को 25000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दी। हालांकि केंद्र ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और मार्च 2023 से इस मुद्दे की सुनवाई एक बड़ी बेंच के समक्ष लंबित है।
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