Up Kiran, Digital Desk: जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आने वाले सामानों पर भारी-भरकम टैरिफ लगाने की धमकी दी थी, तो हर कोई हैरान था। लेकिन एक सेक्टर ऐसा था जिसे इस खतरे से पूरी तरह बाहर रखा गया - भारत का फार्मा सेक्टर, यानी दवा बनाने वाली कंपनियां। सवाल यह उठता है कि ऐसा क्यों हुआ?
इसका जवाब भारत की उस ताकत में छिपा है जिसे "दुनिया की फार्मेसी" कहा जाता है। अमेरिका अपनी जरूरत की एक बहुत बड़ी संख्या में दवाइयों के लिए भारत पर निर्भर है, खासकर जेनेरिक दवाओं के लिए। ये वो दवाइयां होती हैं जो ब्रांडेड दवाओं की तरह ही असरदार होती हैं, लेकिन उनकी कीमत बहुत कम होती है।
अमेरिका की मजबूरी, भारत की ताकत
सच्चाई यह है कि अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली लगभग 40% जेनेरिक दवाएं भारत में ही बनती हैं। अगर इन दवाओं पर टैरिफ लगा दिया जाता, तो इसका सीधा असर अमेरिका के आम लोगों पर पड़ता। वहां दवाइयों की कीमतें आसमान छूने लगतीं और अमेरिकी हेल्थकेयर सिस्टम पर भारी बोझ पड़ जाता। ट्रंप प्रशासन इस बात को अच्छी तरह समझता था कि अपने ही नागरिकों के स्वास्थ्य को दांव पर लगाना एक बहुत बड़ा राजनीतिक जोखिम हो सकता है।
यह फैसला भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव के बावजूद लिया गया। इससे यह साफ पता चलता है कि दवाइयों के मामले में भारत की पकड़ कितनी मजबूत है। भारत सिर्फ सस्ती दवाएं ही नहीं बनाता, बल्कि क्वालिटी के मामले में भी दुनिया के बड़े-बड़े देशों को टक्कर देता है।
सीधी सी बात है कि भारत के फार्मा सेक्टर को छूट देना अमेरिका के लिए कोई एहसान नहीं, बल्कि एक मजबूरी थी। यह भारत की बरसों की मेहनत और क्वालिटी का ही नतीजा है कि आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश भी दवाइयों के लिए उस पर निर्भर हैं।



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