img

नेटफ्लिक्स पर आई 'द रॉयल्स' एक ऐसी कहानी है जहाँ राजस्थान का एक कंगाल हो चुका शाही खानदान और एक तेज-तर्रार बिजनेस सीईओ एक ऐसे सौदे के लिए मिलते हैं, जो लगता तो है दोनों के लिए फायदेमंद होगा, पर आखिर में किसी के हाथ कुछ खास नहीं लगता। साक्षी तंवर, जीनत अमान, डिनो मोरिया, मिलिंद सोमन और चंकी पांडे जैसे मंझे हुए कलाकारों के साथ-साथ ईशान खट्टर, विहान समत, भूमि पेडनेकर, काव्या त्रेहन, यशस्विनी दयामा, नोरा फतेही और नई प्रतिभाएं लिसा मिश्रा और सुमुखी सुरेश भी इस सीरीज का हिस्सा हैं। आठ एपिसोड की यह कहानी रिश्तों के टकराव, शर्टलेस ईशान, साक्षी तंवर के 'माया साराभाई' जैसे अंदाज़, जयपुर के किले और शाही फैशन के इर्द-गिर्द घूमती है। और हाँ, भूमि पेडनेकर की एक्टिंग में भी भारी गिरावट देखने को मिलती है।

कहानी का ताना-बाना

कहानी शुरू होती है भूमि पेडनेकर यानी सोफिया कनमनी शेखर से, जो अपनी कंपनी के लिए एक बड़ी डील पक्की करने की तैयारी में है। यहीं उसकी मुलाकात होती है ईशान खट्टर यानी मोरपुर के महाराज अविराज सिंह से। कुछ नोंक-झोंक और एक रोमांटिक रात के बाद, कहानी का सबसे अटपटा हिस्सा आता है - इनके बीच की तकरार, जो 'दुश्मन से प्रेमी' वाले प्लॉट का आधार होनी चाहिए थी, पर लगती है बड़ी अजीब, खींची हुई और जबरदस्ती की।

जैसे-तैसे एक डील के चलते सोफिया अपनी टीम के साथ मोरपुर के महल पहुँचती है, जहाँ उसे पता चलता है कि दिग्विजय सिंह (विहान समत) नहीं, बल्कि उसका पुराना आशिक अविराज ही उस महल का असली राजा है, जहाँ वह अपना बिजनेस जमाना चाहती है। डील लगभग हाथ से निकलने और एक-दूसरे से प्यार हो जाने के बाद, दोनों किसी तरह डील जारी रखने को राजी होते हैं, क्योंकि राजघराने को पैसे की सख्त जरूरत थी और सोफिया की टीम को यह काम अपनी साख बचाने के लिए करना था। इसके बाद भी कई मुश्किलें, रिश्तों में खटास, सपनों का बनना-बिगड़ना लगा रहता है, जो आपको एक ऐसे अंत तक ले जाता है जो दरअसल एक बंद गली जैसा लगता है।

लेखन और निर्देशन की बात

'द रॉयल्स' को नेहा शर्मा, विष्णु सिन्हा, अन्नुकम्पा हर्ष, इशिता प्रीतिश नंदी और रंगिता प्रीतिश नंदी ने लिखा है, और प्रियंका घोष व नुपुर अस्थाना ने डायरेक्ट किया है। दोनों टीमों ने काम तो अच्छा किया है, पर कुछ कमियां हैं जो छिप नहीं पातीं। ईशान का किरदार, जो 'ब्रिजर्टन' के एंथनी जैसा हो सकता था, बस कन्फ्यूज्ड और अपनी बातों से आसानी से पलटने वाला लगता है। लेखन और निर्देशन में वह गहराई नहीं है जो मुख्य किरदार को मिलनी चाहिए थी। वहीं, जहाँ कुछ किरदारों की अति-प्रतिक्रियाओं पर ज्यादा ध्यान दिया गया, वहीं विहान समत के किरदार के सपनों और उत्साह को और स्क्रीन टाइम मिलना चाहिए था। उसका अचानक महाराजा न होकर शेफ बन जाना हजम नहीं होता। इसी तरह, उसकी बहन दिव्यरंजनी सिंह (काव्या त्रेहन) का अचानक से बाइसेक्शुअल हो जाना भी अटपटा लगता है और उसे कोई खास स्क्रीन स्पेस नहीं मिला।

नोरा फतेही के किरदार आयशा ढोंडी का दिग्विजय सिंह के साथ ऑन-ऑफ रिश्ता भी जबरदस्ती का लगता है। उस समय ईशान का किरदार बस एक ऐसा आदमी लगता है जो अलग-अलग औरतों के साथ सोने के बहाने ढूंढ रहा हो। और जब लगता है कि वह किसी बात पर टिक गया है, तो वह फिर पलट जाता है, सारा दोष सोफिया पर डालकर भाग जाता है। हालांकि, एक दिल से किए गए कबूलनामे से वह इसकी भरपाई करता है। मेकर्स जीनत अमान को माजी के रूप में बेहतर इस्तेमाल कर सकते थे, पर साक्षी तंवर का उन्होंने भरपूर उपयोग किया है। साक्षी और ईशान आपको 'ब्रिजर्टन' के एंथनी और वायलेट की याद दिला सकते हैं। सिनेमैटोग्राफर की तारीफ करनी होगी; कैमरा एंगल और ड्रोन शॉट्स ने शाही अंदाज को बखूबी कैद किया है। डायलॉग राइटर के भी कुछ अच्छे पल हैं। शाही पोशाकों के लिए अबू जानी खोसला का खास जिक्र बनता है। प्रोडक्शन टीम ने भूमि को छोड़कर बाकी सबको अच्छे कपड़े पहनाए हैं; एक सीईओ और लीड होने के नाते भूमि का पहनावा बेहतर हो सकता था।

अभिनय का प्रदर्शन

आठ एपिसोड की ये सीरीज लगभग सभी कलाकारों को अपनी एक्टिंग दिखाने का मौका देती है। लेकिन अंत तक आते-आते कुछ निराश करते हैं तो कुछ अपने बेहतरीन प्रदर्शन पर कायम रहते हैं। सबसे पहले, 'द रॉयल्स' ने ईशान खट्टर के शाही अंदाज को वाकई उभारा है। वह हर फ्रेम में सहज लगते हैं। उनकी डायलॉग डिलीवरी, डांस मूव्स, घुड़सवारी, शरारत, व्यंग्य और रोमांस, सब कुछ सटीक है। ज्यादातर सीन्स में उन्हें शर्टलेस रखना भी अच्छा फैसला था। दूसरी कलाकार जो आपको अपने अगले सीन का इंतजार करवाएंगी, वह हैं साक्षी तंवर। उन्होंने अपने किरदार को बखूबी निभाया है, हालांकि उनके 'माया साराभाई' वाले एक्सेंट की आदत डालने में दूसरा एपिसोड लग सकता है। काश, काव्या त्रेहन और विहान समत को और स्क्रीन स्पेस मिलता! उनकी साइड स्टोरीज दिलचस्प थीं। सहायक कलाकारों में कॉमेडियन सुमुखी सुरेश, दिवा जीनत अमान और उदित अरोड़ा ने भी शानदार काम किया है।

भूमि पेडनेकर 'द रॉयल्स' में बुरी तरह निराश करती हैं। उनका किरदार तो वैसे भी अपने किसी काम को सही साबित नहीं कर पाता, ऊपर से हर सीन में भूमि की ओवरएक्टिंग आपको परेशान कर सकती है। जहाँ बाकी सब फ्रेम में अच्छे लग रहे हैं, वहीं हर फ्रेम में उनकी ओवरएक्टिंग खटकती है। यकीन करना मुश्किल है कि 'दम लगा के हईशा', 'सोनचिरैया' और 'शुभ मंगल सावधान' जैसी फिल्मों में शानदार काम करने वाली एक्ट्रेस इस सीरीज के इमोशनल रेंज को समझ नहीं पाईं। ऊपर से, उनके स्टाइलिस्ट ने भी उनके साथ नाइंसाफी की है। चाहे उनके डांस मूव्स हों या डायलॉग डिलीवरी, सीरीज में कुछ भी प्रभावशाली नहीं है।

कैसी है यह सीरीज?

'द रॉयल्स' में कुछ कमियां जरूर हैं, लेकिन सीरीज मजेदार है। नेटफ्लिक्स की यह पेशकश आपको बांधे रखेगी और हर एपिसोड एक ऐसे मोड़ पर खत्म होता है जो आपको अगला देखने के लिए रोमांचित कर देगा। शाही लाइफस्टाइल को अच्छे से दिखाया गया है और हर किरदार की अपनी खासियत है। सीरीज का संगीत अच्छा है और 'तू है वही' गाना बेहतरीन है। मेकर्स जब इसे 'ब्रिजर्टन' का भारतीय संस्करण कहते हैं, तो वे पूरी तरह गलत नहीं हैं। जाहिर है, ये उतनी भव्य नहीं, पर इसके अपने खास पल हैं। कुल मिलाकर, एक मजेदार वीकेंड वॉच, जिसे 5 में से 3 स्टार दिए जा सकते हैं।

--Advertisement--