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Up Kiran, Digital Desk: भारत एक ऐसा देश है, जहां कुछ किलोमीटर पर भाषा बदल जाती है, पहनावा बदल जाता है और खान-पान का तरीका भी अलग हो जाता है. फिर भी, ऐसी कौन सी ताकत है जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हम सबको एक महसूस कराती है? इस गहरे सवाल का जवाब उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन ने बड़े ही सरल शब्दों में दिया.

उन्होंने बताया कि एक बार यूरोप के एक बड़े नेता ने उनसे पूछा कि इतनी भाषाएं और संस्कृतियां होने के बावजूद भारत एक कैसे है? इस पर उपराष्ट्रपति जी ने जो जवाब दिया, वो हर भारतीय का दिल जीत लेगा. उन्होंने कहा, “भले ही हमारी भाषाएं अलग-अलग हैं, लेकिन हमारा धर्म एक है.”

यहां 'धर्म' का मतलब किसी पूजा-पद्धति से नहीं, बल्कि उस नैतिक कर्तव्य और जीवनशैली से है जो हमें इंसानियत सिखाती है, जो हमें जोड़ना सिखाती है, तोड़ना नहीं. यही वो अदृश्य धागा है जो भारत की अनेकता में एकता को मजबूती से बांधे रखता है.

पटना में एक अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव के समापन पर बोलते हुए उन्होंने बिहार की धरती को ज्ञान की भूमि बताया. उन्होंने याद दिलाया कि कैसे नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय पूरी दुनिया के लिए ज्ञान का केंद्र थे. यह वही धरती है जिसने देश को डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे पहले राष्ट्रपति दिए और लोकनायक जयप्रकाश नारायण जैसे महान नेता दिए, जिनके आंदोलन ने देश की दिशा बदल दी

उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक-दूसरे के साहित्य को समझने से "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" का सपना सच हो सकता है. उन्होंने कहा कि जब हम अलग-अलग भाषाओं में लिखी गई कहानियों और विचारों को पढ़ते हैं, तो हम एक-दूसरे के और करीब आते हैं.

उन्होंने ये भी याद दिलाया कि लोकतंत्र की जड़ें हमारे देश में कितनी गहरी हैं. आज से 2,500 साल पहले वैशाली में दुनिया का पहला गणतंत्र था.यह बताता है कि मिलकर फैसले लेना और सबको साथ लेकर चलना हमारी संस्कृति का हिस्सा हमेशा से रहा है. असल में, भारत की असली ताकत उसकी यही सोच है, जो हर तरह के मतभेदों के बावजूद हमें एक राष्ट्र के रूप में खड़ा रखती है.