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Up Kiran, Digital Desk: मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु की एक फिल्म 'मनुशी' (Manushi) के मामले में एक असाधारण कदम उठाते हुए, फिल्म निर्माताओं और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) के बीच चल रहे कड़वे गतिरोध के बाद सीधे फिल्म की समीक्षा करने का फैसला किया है।

37 कट की मांग पर कोर्ट का सवाल: क्या सेंसर बोर्ड का फैसला जायज था?

जस्टिस एन. आनंद वेंकटेश ने फिल्म के निर्माता सी. वेत्री मारन (C. Vetri Maaran) द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए मंगलवार को यह आदेश दिया। कोर्ट ने 24 अगस्त को चेन्नई में फिल्म की एक निजी स्क्रीनिंग का आदेश दिया है, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि क्या सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्म में 37 कट (cuts) की मांग उचित थी।

फिल्म का विषय और विवाद की जड़

'मनुशी' फिल्म, जिसे वेत्री मारन की ग्रासरूट फिल्म कंपनी ने प्रोड्यूस किया है और गोपी नैनार (Gopi Nainar) ने निर्देशित किया है, में एंड्रिया जेरेमिया (Andrea Jeremiah) मुख्य भूमिका में हैं। यह फिल्म एक ऐसी महिला के कस्टोडियल टॉर्चर (custodial torture) को दर्शाती है, जिस पर आतंकवादी होने का संदेह है। यह विषय पहले से ही अप्रैल 2024 में फिल्म के ट्रेलर के रिलीज होने के बाद से चर्चा में रहा है।

CBFC का "नकारात्मक छवि" और "कम्युनिज्म" पर आपत्ति

यह विवाद सितंबर 2024 में तब शुरू हुआ जब CBFC की परीक्षा और समीक्षा समितियों दोनों ने फिल्म को प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया। उन्होंने फिल्म पर यह कहकर आपत्ति जताई कि यह राज्य को "नकारात्मक रोशनी" (negative light) में चित्रित करती है और दावा किया कि यह "वामपंथी साम्यवाद" (leftist communism) और "मुख्यधारा साम्यवाद" (mainstream communism) के बीच की रेखाओं को धुंधला करती है।

निर्माता का पारदर्शिता पर सवाल, कोर्ट से विशेषज्ञ पैनल की मांग

CBFC द्वारा फिल्म को रिजेक्ट किए जाने को वेत्री मारन ने इस साल जून में चुनौती दी थी। उन्होंने एक रिट याचिका दायर कर आरोप लगाया कि CBFC ने बिना पारदर्शिता के काम किया है, न तो उन्हें फिल्म का बचाव करने का अवसर दिया और न ही विशिष्ट आपत्तियों को स्पष्ट रूप से बताया। उन्होंने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं सहित एक विशेषज्ञ पैनल के गठन की भी मांग की थी ताकि फिल्म की फिर से जांच की जा सके।

हाई कोर्ट का व्यक्तिगत अवलोकन: "आपत्तियों की वैधता जांचने का एकमात्र तरीका"

हाई कोर्ट ने उस पिछली याचिका की सुनवाई करते हुए CBFC की दलील को दर्ज किया था कि उसने फिल्म की फिर से समीक्षा की है और आपत्तिजनक दृश्यों की सूची बनाई है। याचिका का निपटारा जून में कर दिया गया था, जिसमें निर्माता को कानून में मामले को आगे बढ़ाने की स्वतंत्रता दी गई थी।

हालांकि, वेत्री मारन एक नई याचिका के साथ अदालत लौटे, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि बोर्ड की आपत्तियां अत्यधिक और मनमानी हैं। उन्होंने बताया कि "सनिअन" (saniyan) जैसे सामान्य बोलचाल के अपमानजनक शब्दों को भी हटाने के लिए चिह्नित किया गया था, जिसे उन्होंने CBFC के दिशानिर्देशों का उल्लंघन बताया। इन दावों पर प्रतिक्रिया देते हुए, जस्टिस वेंकटेश ने टिप्पणी की कि आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका निजी तौर पर फिल्म देखना है, साथ ही सेंसर बोर्ड के सदस्यों के साथ मिलकर आपत्तियों की वैधता की पुष्टि करनी होगी।

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