Up kiran,Digital Desk : हम अक्सर सोचते हैं कि दुनिया बाहर बहुत खराब है और घर ही वो जगह है जहां हम सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं। लेकिन अगर आपको पता चले कि यही घर और हमारे सबसे करीबी लोग ही महिलाओं के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं, तो? यह सुनकर अजीब लगता है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र (UN) की हालिया रिपोर्ट कुछ ऐसा ही भयानक सच बयां कर रही है। आंकड़े ऐसे हैं कि किसी का भी दिल दहल जाए।
हर 10 मिनट में एक महिला की हत्या
जरा घड़ी की सुई पर नजर डालिए। 10 मिनट का वक्त बहुत छोटा होता है, है न? लेकिन UN के मुताबिक, दुनिया भर में ठीक इसी 10 मिनट के भीतर एक महिला या लड़की की हत्या कर दी जाती है। और हत्यारा कोई अनजान नहीं होता, बल्कि उसका अपना पति, पार्टनर या परिवार का कोई करीबी सदस्य होता है।
गणित के हिसाब से देखें तो रोजाना औसतन 137 महिलाएं और लड़कियां सिर्फ इसलिए मारी जा रही हैं क्योंकि उनके घरवाले या साथी उनके जान के दुश्मन बन गए हैं। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि हमारे समाज की वो हकीकत है जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं।
दुनिया भर में अपनों से ही खतरा
संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (UNODC) और संयुक्त राष्ट्र महिला (UN Women) की रिपोर्ट कहती है कि यह समस्या किसी एक देश की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की है। पिछले साल के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में करीब 83,000 महिलाओं की जानबूझकर हत्या की गई। इसमें से चौंकाने वाली बात ये है कि लगभग 60 प्रतिशत यानी 50,000 हत्याएं उनके पार्टनर या परिवार वालों ने कीं।
वहीं अगर हम पुरुषों की बात करें, तो उनके साथ ऐसा बहुत कम होता है। उसी साल हुई कुल हत्याओं में सिर्फ 11 प्रतिशत पुरुष ही ऐसे थे जिनकी जान उनके परिवार या पार्टनर के हाथों गई। यानी महिलाओं के लिए उनका अपना घर पुरुषों के मुकाबले कई गुना ज्यादा जानलेवा है।
अफ्रीका में हालात सबसे बदतर
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सबसे ज्यादा खतरा कहां है। फेमिसाइड (महिलाओं की हत्या) के मामले में अफ्रीका सबसे आगे है। वहां हर एक लाख महिलाओं पर तीन की हत्या कर दी जाती है। इसके बाद अमेरिका, ओशिनिया, एशिया और फिर यूरोप का नंबर आता है। यानी चाहे देश विकसित हो या विकासशील, महिलाओं के प्रति हिंसा की मानसिकता हर जगह मौजूद है।
सिर्फ थप्पड़ नहीं, अब जान जा रही है
UNODC के अधिकारी जान ब्रैंडोलिनो ने एक बहुत गंभीर बात कही। उनका कहना है कि बहुत सी महिलाओं के लिए उनका घर सुकून की जगह नहीं, बल्कि एक 'जानलेवा जगह' बन चुका है। हमें ऐसे कानूनों और सुरक्षा की जरूरत है जो इस हिंसा को जड़ से रोक सकें।
ऑनलाइन नफरत बन रही असली हिंसा
आज के डिजिटल दौर में खतरा सिर्फ चारदीवारी तक सीमित नहीं है। UN की सारा हेंड्रिक्स ने एक नए खतरे की तरफ इशारा किया है—'ऑनलाइन वायलेंस'। सोशल मीडिया पर दी जाने वाली गालियां और धमकियां अक्सर सिर्फ स्क्रीन तक नहीं रहतीं। कई बार यह ऑनलाइन गुस्सा रियल लाइफ में मर्डर तक पहुंच जाता है। यह हिंसा का एक ऐसा नया रूप है जो तेजी से पैर पसार रहा है।
कुल मिलाकर, ये आंकड़े हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या हम वाकई सभ्य समाज में रह रहे हैं, जहां महिलाएं अपने ही घर में सुरक्षित नहीं हैं?
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