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Up Kiran, Digital Desk: अक्सर जब हम माता-पिता बनने या बच्चे के पालन-पोषण के बारे में सोचते हैं, तो हमारा सारा ध्यान बच्चे की ज़रूरतों, उसकी परवरिश के तरीकों और उसके भविष्य पर होता है। लेकिन हकीकत यह है कि बच्चे को प्रभावी ढंग से पालने के लिए, माता-पिता के रूप में हमें पहले खुद को समझना और अपने अंदर झाँकना बहुत ज़रूरी है। यहीं पर 'भीतरी बच्चे' (Inner Child) का कॉन्सेप्ट आता है।

'भीतरी बच्चा' आपके अपने बचपन की भावनाओं, अनुभवों और अनसुनी ज़रूरतों का वो हिस्सा है जो आज भी आपके अंदर मौजूद है और एक वयस्क के रूप में आपके व्यवहार और प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करता है। अगर बचपन में आपको प्यार, सुरक्षा या समझ की कमी महसूस हुई हो, या आपने कोई मुश्किल अनुभव झेला हो, तो वो घाव आपके अंदर के बच्चे में रह जाते हैं।

ये अनसुलझे मुद्दे अनजाने में आपके पालन-पोषण के तरीके पर असर डाल सकते हैं। हो सकता है आप अपने बच्चे पर अपने बचपन के डर या insecurity थोप दें। या आप वही parenting style दोहराएं जो आपके माता-पिता ने अपनाया था, भले ही वह आपके लिए अच्छा न रहा हो। आप भावनात्मक रूप से अनुपलब्ध (emotionally unavailable) हो सकते हैं या छोटी-छोटी बातों पर ज़्यादा प्रतिक्रिया (overreact) कर सकते हैं, क्योंकि आपके अंदर का बच्चा अब भी दर्द में है।

इसलिए, अपने बच्चे को पालने से पहले या साथ ही अपने 'भीतरी बच्चे' को हील करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका मतलब है अपने बचपन के अनुभवों को स्वीकार करना, अपनी भावनाओं को समझना, उन घावों को भरना जो अभी भी दर्द देते हैं, और अपने अंदर के बच्चे को वो प्यार, सुरक्षा और स्वीकृति देना जो शायद उसे तब नहीं मिली।

यह आसान नहीं है, इसमें समय और प्रयास लगता है, कई बार प्रोफेशनल मदद (therapy) की भी ज़रूरत होती है। लेकिन जब आप अपने भीतरी बच्चे को हील करते हैं, तो आप ज़्यादा aware, patient और emotionally available parent बन पाते हैं। आप अपने बच्चे की ज़रूरतों को ज़्यादा साफ तौर पर देख पाते हैं और उन पर अपनी unresolved issues का बोझ नहीं डालते। अपने बच्चे को देने वाला सबसे बड़ा उपहार यही है कि आप खुद एक emotionally healthy और secure व्यक्ति बनें।

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