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Up Kiran, Digital Desk: सुप्रीम कोर्ट ने सिख समुदाय के विवाह रजिस्ट्रेशन को लेकर एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाया है। अदालत ने देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सख्त निर्देश दिया है कि वे तीन महीने के भीतर आनंद विवाह अधिनियम (Anand Marriage Act) के तहत सिख शादियों के रजिस्ट्रेशन के लिए नियम बनाएं और उन्हें लागू करें।

अदालत की इस फटकार ने उस दशकों पुराने सवाल को फिर से जिंदा कर दिया है कि आखिर जब सिखों की शादी उनकी अपनी रस्म 'आनंद कारज' से होती है, तो उन्हें इसका रजिस्ट्रेशन हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्यों करवाना पड़ता था?

क्या है 'आनंद कारज' और यह पूरा मामला?

'आनंद कारज' सिख धर्म में विवाह की पवित्र रस्म है, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'आनंदमय मिलन'। इसकी शुरुआत तीसरे सिख गुरु, गुरु अमर दास जी ने की थी। इस रस्म में दूल्हा और दुल्हन सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब के चार फेरे (लावां) लेते हैं और खुद को एक-दूसरे को समर्पित करते हैं।

अंग्रेजों के समय, 1909 में, इस 'आनंद कारज' रस्म को कानूनी मान्यता देने के लिए आनंद विवाह अधिनियम, 1909 बनाया गया था।

तो फिर समस्या कहां थी?समस्या यह थी कि 1909 का यह कानून सिर्फ शादी की रस्म को मान्यता देता था, उसके रजिस्ट्रेशन (पंजीकरण) का कोई प्रावधान नहीं था। इसलिए, आजादी के बाद जब शादियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य हुआ, तो सिखों को अपनी शादी का पंजीकरण हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत ही करवाना पड़ता था।

सिख समुदाय लंबे समय से यह मांग कर रहा था कि जब उनका धर्म और उनकी विवाह की रस्में अलग हैं, तो उन्हें अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन भी अपने ही कानून के तहत करने का अधिकार मिलना चाहिए।

2012 में आया बड़ा बदलाव, पर अधूरा रह गया काम

इस मांग को देखते हुए, 2012 में संसद ने आनंद विवाह (संशोधन) अधिनियम, 2012 पास किया। इस संशोधन ने सिखों को यह अधिकार दिया कि वे अपनी शादियों का रजिस्ट्रेशन 'आनंद विवाह अधिनियम' के तहत करवा सकते हैं।

लेकिन कानून बना देना ही काफी नहीं था। इस कानून को जमीन पर लागू करने के लिए राज्यों को अपने-अपने यहां नियम (Rules) बनाने थे कि रजिस्ट्रेशन कैसे होगा, फॉर्म क्या होगा, प्रक्रिया क्या होगी, आदि। अफसोस की बात यह है कि 2012 के बाद से आज तक ज्यादातर राज्यों ने ये नियम बनाए ही नहीं।

अब सुप्रीम कोर्ट ने खत्म किया इंतजार

इसी अधूरी कार्रवाई पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई है। अदालत ने कहा है कि एक दशक से भी ज्यादा समय बीत चुका है और अब और देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। कोर्ट के इस आदेश के बाद अब यह उम्मीद जगी है कि सिख समुदाय को जल्द ही अपनी शादियों को अपने ही धार्मिक रीति-रिवाजों और कानूनों के तहत पंजीकृत कराने का पूरा अधिकार मिल जाएगा, जो उनकी अलग धार्मिक पहचान को और मजबूत करेगा।