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लखनऊ। दो तीन दशकों में सब कुछ बदल गया। चुनाव प्रचार के तौर - तरीके भी बदल गए हैं। वाल राइटिंग्स, बैनर - पोस्टर और हैंडबिल अब गुजरे जमाने की चीजें हो चुकी हैं। जनसंपर्कों में भी कमीं आई है। लोक गीतों की तर्ज़ पर अब चुनावी गीत भी नहीं सुनाई पड़ते। लाउडस्पीकरों का शोर तो कब का खत्म हो चुका है। क्षेत्र में नेताओं को अपनी छवि बनाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत नहीं रह गयी है। अब ये काम एजेंसियां कर रही हैं।

देश में हो रहे लोकसभा चुनाव में अस्सी और नब्बे के दशक वाले चुनावी उत्सव की अनुभूति नहीं हो रही है। सियासी पार्टियों के नेता जनसंपर्क तो कर रहे हैं, लेकिन समर्थकों के झुण्ड के साथ गांवों और मुहल्लों में फैलाने की टैंपो हाई है, फैलाने हमारा भाई है, के नारे नदारद हैं। दीवारों पर बैनर-पोस्टर भी नजर नहीं आ रहे हैं। चौराहों पर नेताओं के कटआउट भी नहीं दिख रहे हैं।

दरअसल, समय के साथ चुनाव प्रचार का तरीका भी बदल गया है। अब चुनावों में प्रचार के लिए सोशल मीडिया, रील्स, मीम्स और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल हो रहा है। चुनाव क्षेत्र में नेता जी की छवि को चमकाने का काम एजेंसियां कर रही हैं। एजेंसी के कर्मचारी भावनात्मक गीतों की रील्स के साथ पोस्टर आदि बनाकर मतदाताओं के बीच वायरल कर रहे हैं।

चुनाव मैदान में प्रत्याशियों का फोकस विडियो कंटेंट पर है। मतदाताओं के बीच प्रत्याशी की छाप छोड़ने के लिए विडियो कंटेंट क्रिएटर्स की मांग में जबरदस्त इजाफा हुआ है। पब्लिसिटी और सोशल मीडिया कैम्पेन का काम करने वाली एक कंपनी के सीईओ के मुताबिक़ मौजूदा लोकसभा चुनाव में शार्ट विडियो और रील्स की की मांग ज्यादा है। इसके लिए पार्टी और प्रत्याशी अच्छा खासा खर्च कर रहे हैं। 
 
इसके साथ ही शार्ट विडियो या रील्स को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए विडियो ट्रेंड करवाने वाली एजेंसियां भी सक्रिय हैं। ये एजेंसियां यू-ट्यूबर्स और सोशल मीडिया इंफ्ल्यूएंसर्स के जरिये चुनावी सभाओं के लाइव टेलिकास्ट और जनसंपर्क के विडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर उन्हें ट्रेंड भी करती हैं। ज्यादातर सियासी पार्टियां और उनके प्रत्याशी विभिन्न श्रेणियों की एजेंसियों से करार कर रखा है। ये एजेंसियां प्रत्याशियों और पार्टियों के काम को आसान बना दे रही हैं।

लोकसभा चुनाव में एआई तकनीक का इस्तेमाल जमकर किया जा रहा है। चूंकि मौजूदा दौर में सियासी पार्टियों और नेताओं का जोर अलग-अलग कंटेट को विभिन्न आयु वर्ग के वोटरों तक भी पहुंचाने का है। युवाओं पर फोकस ज्यादा रहता है। शिक्षा और रोजगार से जुड़े पोस्ट या वीडिओ युवाओं तक पहुंचाया जा रहा है। िडके लिए आईटी कंपनियां सियासी पार्टियों और प्रत्याशियों के सोशल मीडिया अकाउंट हैंडल करने के साथ इनके लिए कंटेंट, विडियो, डेली पोस्ट के लिए कंटेंट भी बना रही हैं।  

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