img

रस्सियों के नाम और अर्थ

पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा में तीन रथ होते हैं, और हर रथ की रस्सी का खास नाम और मतलब होता है:

1. शंखचूड़ रस्सी – भगवान जगन्नाथ के रथ (नंदीघोष) को खींचने के लिए। कहा जाता है कि यह रस्सी शंखचूड़ नामक राक्षस की रीढ़ की हड्डी से बनी थी, जिसे बलभद्र ने मारा था। इसके बाद इसे पवित्र माना गया और रथ खींचने का माध्यम बना  ।


2. वासुकी रस्सी – बलभद्र के रथ (तालध्वज) को खींचने वाली रस्सी का नाम है  ।


3. स्वर्णचूड़ा या नदंबिक रस्सी – देवी सुभद्रा के रथ (पद्मध्वज) को खींचने वाली रस्सी  ।

 


 रस्सी खींचने का आध्यात्मिक महत्व

भक्तों के लिए इन रस्सियों को छूना मात्र ही पुण्य का काम माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि इससे उनके सारे पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है  ।

रस्सी खींचने से भक्तों का भक्ति-भाव प्रकट होता है – यह उनका समर्पण और प्रेम दर्शाता है  ।

 

  पौराणिक कथा

पुरानी कथा अनुसार, शंखचूड़ नामक एक राक्षस ने भगवान जगन्नाथ का अपहरण करने की कोशिश की थी। भगवान बलभद्र ने उसे वध किया और उसकी रीढ़ की हड्डी से रस्सी बनवाई, जिसे आज भी जगन्नाथ जी के रथ के लिए महत्वपूर्व माना जाता हैं।

  संस्कृति और परंपरा

रथों की रस्सियां विशेष रूप से Odisha की Birapratapur गांव या कोरल मिलों में बनाई जाती हैं, जिसमें सूत, कर्न्येय पदार्थ और तेल शामिल होता है  ।

रथयात्रा के समय लाखों भक्त बड़े उत्साह के साथ रथ खींचते हुए भगवान को दर्शन की प्राप्ति करते हैं; यह हिंदू धर्म के सबसे बड़े उत्सवों में से एक है  ।

--Advertisement--