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Up Kiran, Digital Desk: बिहार की राजनीति में मुंगेर जिले की तारापुर विधानसभा सीट का हमेशा से एक खास स्थान रहा है. यह सीट जमुई लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और यहां की राजनीतिक हलचल दशकों से राज्य की राजनीति पर असर डालती रही है. विधानसभा क्षेत्र संख्या 164 के रूप में पहचानी जाने वाली यह एक सामान्य सीट है, जहां जीत का फैसला अक्सर जातीय समीकरणों पर ही होता आया है.

कैसा रहा है तारापुर का राजनीतिक इतिहास?

1951 में अपने गठन के बाद से, तारापुर की जनता ने 19 बार अपने विधायक को चुना है, जिसमें दो उपचुनाव भी शामिल हैं. यहां की हवा हमेशा बदलती रही है. एक समय था जब कांग्रेस का दबदबा था और उसने पांच बार यह सीट जीती. वहीं, नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू (पहले समता पार्टी) यहां सबसे सफल रही है और उसने 6 बार जीत का परचम लहराया है. लालू प्रसाद यादव की आरजेडी ने भी तीन बार यहां जीत का स्वाद चखा है. इसके अलावा, सोशलिस्ट पार्टी से लेकर निर्दलीय उम्मीदवार तक, सबने एक-एक बार यहां अपनी किस्मत आजमाई है.

जाति और लोग: कैसा है यहां का सामाजिक ताना-बाना?

तारापुर का चुनाव जीतना किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं है क्योंकि यहां का सामाजिक ताना-बाना बहुत जटिल है. यहां अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC), मुस्लिम और अन्य समुदाय के लोग मिलकर अपना नेता चुनते हैं. माना जाता है कि कुशवाहा समुदाय का वोट यहां हार-जीत तय करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाता आया है.

इसके अलावा, यहां के युवा और दूसरे शहरों में काम करने वाले प्रवासी मजदूर भी एक बड़ी ताकत हैं. यहां की अर्थव्यवस्था खेती के साथ-साथ बाहर से भेजे गए पैसों पर भी बहुत निर्भर करती है.

क्या हैं 2025 चुनाव के सबसे बड़े मुद्दे?

इस बार का चुनाव सिर्फ जाति पर नहीं, बल्कि जमीन से जुड़े मुद्दों पर भी लड़ा जाएगा. तारापुर के लोग कई बड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं, जो नेताओं के लिए चुनौती बन सकते हैं: