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Up Kiran, Digital Desk: पिछले दो दिनों से प्रदेश में मौसम का नरम रुख रहने के कारण बिजली की मांग में करीब 50 से 80 लाख यूनिट की कमी देखी गई है। इस बदलाव ने बिजली की खपत पर असर डाला है मगर इसके बावजूद आपूर्ति पूरी तरह से बनी हुई है। अभी प्रदेश की कुल बिजली की मांग लगभग 4.9 करोड़ यूनिट है जिसमें केंद्रीय पूल से 2.2 करोड़ और राज्य से 2.1 करोड़ यूनिट बिजली प्राप्त हो रही है। शेष जरूरत पूरी करने के लिए यूपीसीएल रोजाना करीब तीन करोड़ यूनिट बिजली बाजार से खरीद रहा है।

बिजली कटौती का कोई खतरा नहीं

सबसे बड़ी राहत यह है कि प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं को फिलहाल कहीं भी बिजली कटौती का सामना नहीं करना पड़ रहा है। बिजली वितरण निगम यूपीसीएल ने साफ किया है कि बिजली आपूर्ति में कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। साथ ही बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।

जुलाई के बिल में बिजली की कीमत में मामूली बढ़ोतरी

हालांकि अच्छी खबर यह है कि बिजली कटौती नहीं होगी मगर जुलाई के महीने का बिजली बिल करीब 20 पैसे प्रति यूनिट महंगा आएगा। इसकी वजह बिजली खरीद की लागत में हुए बदलाव हैं। यूपीसीएल ने फ्यूल एंड पावर परचेज कॉस्ट एडजस्टमेंट (एफपीपीसीए) के तहत तीन माह की अवधि में हुए खरीद और रिकवरी का हिसाब आयोग को प्रस्तुत किया था।

यूपीसीएल ने नियामक आयोग से की वसूली की मांग

यूपीसीएल ने आयोग में याचिका दायर कर बताया था कि अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही में उपभोक्ताओं से एफपीपीसीए के तहत 35 करोड़ रुपये की रिकवरी की गई थी जबकि बिजली खरीद की कुल लागत 57.73 करोड़ रुपये थी। यानी 22.73 करोड़ रुपये का अंतर अभी रिकवर करना बाकी था। आयोग ने इस राशि को जून के बिल में जोड़कर जुलाई में वसूली की अनुमति दे दी है।

इसका मतलब यह है कि उपभोक्ताओं के बिजली बिल में औसतन 22 पैसे प्रति यूनिट की बढ़ोतरी होगी मगर यह बढ़ोतरी केवल एक महीने के लिए लागू होगी।

एफपीपीसीए क्या है और क्यों जरूरी है

फ्यूल एंड पावर परचेज कॉस्ट एडजस्टमेंट (एफपीपीसीए) एक ऐसा मैकेनिज्म है जिसके तहत यूपीसीएल अपनी बिजली खरीद की लागतों के अनुसार उपभोक्ताओं से अतिरिक्त वसूली या छूट प्रदान करता है। यदि बिजली खरीद के दाम निर्धारित दर से ज्यादा होते हैं तो उपभोक्ताओं से अतिरिक्त वसूली की जाती है और यदि दाम कम होते हैं तो उपभोक्ताओं को छूट दी जाती है।

यह प्रक्रिया हर महीने की जाती है और इसकी रिपोर्ट नियामक आयोग के सामने पेश की जाती है ताकि पारदर्शिता बनी रहे।

 

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