img

Up Kiran, Digital Desk: हम सब की ज़िंदगी में एक कहानी होती है, जो कभी पूरी नहीं होती। एक अधूरा प्यार, एक अधूरा सपना, एक अधूरा 'काश'... और हम उसी अधूरी कहानी को मन के किसी कोने में रखकर पूरी ज़िंदगी जीते हैं। महेश भट्ट एक बार फिर से अपनी उसी पुरानी, लेकिन कभी न मुरझाने वाली कला के साथ लौटे हैं, जहाँ वो परदे पर सितारे नहीं, बल्कि टूटे हुए, बिखरे हुए, लेकिन असली किरदार दिखाते हैं। उनकी नई फिल्म 'तू मेरी पूरी कहानी' इसी की एक दर्दभरी और ख़ूबसूरत मिसाल है।

कहानी, जो सीधी है, पर गहरी है

यह कहानी है एक छोटे शहर के लड़के (नया चेहरा) की, जिसकी आँखों में बड़े सपने हैं और उंगलियों में गिटार का जादू। उसकी ज़िंदगी है उसकी दोस्त, उसका प्यार (नई अदाकारा), जो उसके सपनों को अपनी आँखों से देखती है। दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं, और एक-दूसरे के साथ पूरे। लेकिन कहानी में मोड़ तब आता है, जब सपनों को पूरा करने की ज़िद उस रिश्ते पर भारी पड़ने लगती है जो उसकी सबसे बड़ी ताकत था।

यह फिल्म प्यार और महत्वाकांक्षा के बीच उस महीन धागे पर चलती है, जहाँ एक को कसकर पकड़ने की कोशिश में दूसरा हाथ से फिसल जाता है। महेश भट्ट आपको कोई बड़े-बड़े ट्विस्ट नहीं दिखाते, बल्कि वो आपको किरदारों की उस अंदरूनी घुटन और बेचैनी का हिस्सा बना लेते हैं, जो आपको अपनी सी लगने लगती है।

वो अदाकारी, जो बनावटी नहीं लगती

महेश भट्ट की सबसे बड़ी खूबी है नए चेहरों से उनका बेस्ट निकलवाना, और इस फिल्म में भी उन्होंने यह कर दिखाया है। दोनों नए कलाकारों ने अपने किरदारों को जिया है। उनके काम में एक कच्चापन है, एक ईमानदारी है जो आजकल की फिल्मों में कम ही दिखती है। लड़के की आँखों में सपनों की आग और प्यार को खोने का डर एक साथ दिखता है, तो लड़की की ख़ामोशी उसके प्यार की गहराई को बयां कर जाती है।

संगीत: फिल्म की धड़कन

महेश भट्ट की फिल्म हो और उसका संगीत रूहानी न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। इस फिल्म का संगीत इसकी कहानी की आत्मा है। हर गाना कहानी को आगे बढ़ाता है। अरिजीत सिंह की आवाज़ में फिल्म का टाइटल ट्रैक आपके दिल में उतर जाता है और फिल्म खत्म होने के बाद भी देर तक ज़ुबान पर रहता है। गाने सिर्फ़ फिलर नहीं, बल्कि किरदारों की अनकही बातें हैं।

आखिरी शब्द: 'तू मेरी पूरी कहानी' उन लोगों के लिए नहीं है जो सिनेमा में सिर्फ चमक-धमक और मनोरंजन ढूंढते हैं। यह फिल्म हंसाएगी नहीं, शायद रुलाएगी। यह आराम नहीं देगी, बल्कि एक बेचैनी देगी। यह आपको उन सवालों के साथ छोड़ जाएगी जिनका जवाब शायद आपके पास भी न हो।

अगर आपको 'अर्थ' और 'सारांश' जैसा कच्चा और असली सिनेमा पसंद है, तो यह फिल्म आपके लिए है। यह उन सभी टूटे हुए आशिकों और सपने देखने वालों के लिए है, जिन्हें यह एहसास है कि कभी-कभी सबसे पूरी कहानियां वही होती हैं, जो अधूरी रह जाती हैं।