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Up Kiran, Digital Desk: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक बड़ा ऐलान किया है जिसने पूरे दक्षिण एशिया की राजनीति और ऊर्जा बाज़ार में हलचल मचा दी है। ट्रंप ने घोषणा की है कि अमेरिका पाकिस्तान के साथ मिलकर वहां के समुद्री तेल भंडारों के विकास में सहयोग करेगा। यहां तक कि उन्होंने यह भी जताया कि भविष्य में पाकिस्तान भारत को भी तेल बेच सकता है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब उन्होंने भारत पर टैरिफ लगाने की घोषणा की थी।

इस खबर में हम जानेंगे कि कराची के समुद्र में मौजूद ये तेल भंडार कितने विशाल हैं और कैसे यह पाकिस्तान की आर्थिक तस्वीर बदल सकते हैं।

कराची के समुद्र में छुपा है विशाल तेल भंडार

2024 में पाकिस्तान की समुद्री सीमा में तेल और गैस का एक बड़ा भंडार मिला था। कई सालों की कड़ी मेहनत और सहयोगी देशों के साथ संयुक्त सर्वेक्षण के बाद यह पता चला कि यह क्षेत्र दुनिया के चौथे सबसे बड़े गैस और तेल भंडारों में से एक है।

अगर तुलना करें तो सबसे बड़ा तेल भंडार वेनेजुएला में है जहां 34 लाख बैरल तेल पाया गया है। अमेरिका के तेल भंडार भी बहुत शुद्ध और विशाल हैं। लेकिन पाकिस्तान के लिए यह खोज किसी खजाने से कम नहीं।

तेल निकालना होगा आसान नहीं, खर्च भी भारी

पाकिस्तानी अधिकारियों के मुताबिक इस भंडार की रिसर्च और विकास में लगभग 42 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा। साथ ही इसे समुद्र से निकालने में करीब 4-5 साल का वक्त लग सकता है।

यह निवेश पाकिस्तान की ‘ब्लू वॉटर इकोनॉमी’ योजना के लिए अहम है जो समुद्री संसाधनों का उपयोग करके आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की रणनीति है। इसके तहत नए बंदरगाह समुद्री मार्ग और नीतियां विकसित की जाएंगी।

पाकिस्तान के लिए एक बड़ा आर्थिक वरदान

तेल और गैस के इतने विशाल भंडार मिलने से पाकिस्तान के लिए आर्थिक सुधार की राह आसान हो सकती है। यह संकट से जूझ रहे देश के लिए ‘अलादीन का चिराग’ साबित हो सकता है।

आयात कम होगा: गैस के घरेलू भंडार के कारण महंगी एलएनजी की जरूरत घटेगी।

आर्थिक संकट से निजात: ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और देश की मुद्रा पर दबाव कम होगा।

नए रोजगार: ब्लू इकॉनमी के तहत नए बंदरगाह और परियोजनाएं रोजगार के नए अवसर पैदा करेंगी।

भारत के लिए क्या मायने रखती है यह डील

ट्रंप के इस बयान ने यह संकेत दिया कि पाकिस्तान भविष्य में भारत को तेल सप्लाई कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो यह क्षेत्रीय ऊर्जा सहयोग के लिए बड़ा कदम हो सकता है।

हालांकि राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों के कारण इस दिशा में कई चुनौतियां होंगी लेकिन ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग दोनों देशों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

 

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