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Up kiran,Digital Desk : "हमें लगा था कि हम कभी अपने घर, अपने परिवार के पास लौट ही नहीं पाएंगे..." यह कहते हुए गजेंद्र महतो की आंखों में आंसू आ जाते हैं. गजेंद्र उन सात मजदूरों में से एक हैं, जिन्हें बिहार सरकार की कोशिशों के बाद असम से छुड़ाकर वापस उनके गांव लाया गया है. उनके घर लौटते ही परिवार में जो खुशी का माहौल है, उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है.

रोजगार की तलाश में पहुंचे थे असम, बना लिए गए बंधक

यह कहानी है बिहार के छपरा (सारण) जिले के सात मजदूरों की, जो रोजी-रोटी कमाने के लिए असम के तिनसुकिया जिले के एक ईंट भट्ठे पर काम करने गए थे. उन्हें उम्मीद थी कि वहां मेहनत-मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पाल सकेंगे, लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा.

आरोप है कि ईंट भट्ठे के मालिक कौशल सिंह ने इन सभी को बंधक बना लिया. उनसे जानवरों की तरह काम करवाया जाता था, लेकिन मजदूरी के नाम पर कुछ नहीं दिया गया. वे एक तरह से बंधुआ मजदूर बनकर रह गए थे.

एक फोन कॉल ने बदली किस्मत

उन्हीं में से एक मजदूर ने किसी तरह हिम्मत जुटाकर चुपके से अपने घर वालों को फोन कर दिया और अपनी पूरी कहानी बताई. जैसे ही परिवार वालों को यह खबर मिली, उनके पैरों तले जमीन खिसक गई.

उन्होंने फौरन स्थानीय मुखिया मिथिलेश कुमार राय से संपर्क किया. मुखिया जी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए बिना देर किए बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और श्रम संसाधन मंत्री संजय सिंह टाइगर से मदद की गुहार लगाई. उन्होंने पूर्व जिलाधिकारी दीपक आनंद से भी बात की, जो अब श्रम संसाधन विभाग में सचिव हैं.

सरकार की तेजी और पुलिस का एक्शन

मामला सरकार तक पहुंचते ही प्रशासन हरकत में आ गया. श्रम संसाधन विभाग और असम पुलिस ने मिलकर एक योजना बनाई और ईंट भट्ठे पर छापा मारकर सभी सात मजदूरों को सुरक्षित छुड़ा लिया.

घर लौटे मजदूर सुरेश राम बताते हैं, "अगर सरकार और मुखिया जी ने समय पर हमारी मदद न की होती, तो शायद हमारा कुछ भी हो सकता था." सभी मजदूरों ने बिहार सरकार, प्रशासन और खासकर मुखिया मिथिलेश राय का दिल से शुक्रिया अदा किया है.

मुखिया मिथिलेश राय का कहना है कि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों, इसके लिए अब पंचायत स्तर पर बाहर काम करने जाने वाले सभी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन किया जाएगा. इससे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी