
Up Kiran, Digital Desk: हमारे देश में हर साल हज़ारों लड़कियाँ और महिलाएँ गायब हो जाती हैं। वे कहाँ जाती हैं? उन्हें कौन ले जाता है? कड़वा सच यह है कि इनमें से ज़्यादातर को बेच दिया जाता है कभी जिस्मफरोशी के दलदल में, तो कभी बंधुआ मज़दूरी के नर्क में। इस खौफनाक अपराध को हम ‘मानव तस्करी’ कहते हैं, और यह एक ऐसा बाज़ार है जो हमारे समाज के भीतर ही फल-फूल रहा है।
हाल ही में विजयवाड़ा में हुए एक कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने इस मुद्दे पर कुछ ऐसी बातें सामने रखीं, जो डराने वाली भी हैं और हमारी आँखें खोलने वाली भी। उन्होंने बताया कि भारत सरकार इस अपराध को रोकने के लिए कोशिशें तो कर रही है, लेकिन ये कोशिशें अभी भी नाकाफी हैं।
अमेरिका की रिपोर्ट में भारत 'Tier 2' पर क्यों है?
अमेरिका हर साल दुनिया भर में मानव तस्करी पर एक रिपोर्ट जारी करता है। इस रिपोर्ट में भारत को 'Tier 2' श्रेणी में रखा गया है। इसका सीधा सा मतलब है कि "सरकार कोशिश तो कर रही है, लेकिन तस्करी को खत्म करने के लिए जो न्यूनतम मानक हैं, उन्हें पूरी तरह से पूरा नहीं कर पा रही है।"
आखिर कहाँ हैं असली दिक्कतें? कोई एक मज़बूत कानून नहीं: हैरानी की बात है कि मानव तस्करी जैसे गंभीर अपराध से लड़ने के लिए देश में कोई एक, सख़्त और राष्ट्रव्यापी कानून नहीं है। 2021 में एक बिल लाया तो गया था, लेकिन वह आज तक पास नहीं हो पाया है। अलग-अलग कानूनों के होने से अपराधी अक्सर बच निकलते हैं।
अपराधियों को सज़ा नहीं मिलती: सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इस धंधे में शामिल बहुत कम अपराधियों को सज़ा हो पाती है। वे पकड़े भी जाते हैं, तो सबूतों के अभाव में या कानूनी दांव-पेंच का फायदा उठाकर आसानी से छूट जाते हैं।
बचाई गई लड़कियों का दर्दनाक भविष्य: सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि जिन लड़कियों या महिलाओं को इस नर्क से बचाया जाता है, उनके पुनर्वास की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। उन्हें समाज स्वीकार नहीं करता, उनके पास रहने या कमाने का कोई जरिया नहीं होता। इसी मजबूरी का फायदा उठाकर तस्कर उन्हें फिर से अपने जाल में फंसा लेते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक इस अपराध के लिए एक सख़्त कानून नहीं बनता और बचाए गए पीड़ितों को समाज में एक सम्मानजनक जीवन देने की व्यवस्था नहीं होती, तब तक इस बाज़ार को जड़ से खत्म करना लगभग नामुमकिन है। यह सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि हम सबकी लड़ाई है।