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Up Kiran, Digital Desk: क्या सिर्फ अपराधी को सज़ा देने तक सीमित है? या क्या यह पीड़ित के दर्द को समझने और उसे सहारा देने के बारे में भी है? त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने इस बेहद अहम सवाल पर ज़ोर दिया है। आपराधिक कानून पर आयोजित एक महत्वपूर्ण कार्यशाला में, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमारा पूरा न्यायिक तंत्र अब 'पीड़ित-केंद्रित' होना चाहिए। यह एक ऐसा बड़ा कदम है, जो भारतीय न्याय प्रणाली में एक मानवीय बदलाव ला सकता है।

परंपरागत सोच से हटकर, अब पीड़ित पर ध्यान: परंपरागत रूप से, हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली ज़्यादातर अपराधी को सज़ा देने और राज्य के खिलाफ हुए अपराध पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित करती रही है। लेकिन मुख्यमंत्री ने जिस 'पीड़ित-केंद्रित न्याय' की बात की, उसका मतलब है कि न्याय की प्रक्रिया में पीड़ित व्यक्ति के दर्द, उसकी ज़रूरतों और उसकी बहाली को सबसे पहले रखा जाए।

मुख्यमंत्री माणिक साहा का संदेश: मुख्यमंत्री माणिक साहा ने अपने संबोधन में कहा कि न्याय केवल कानून की किताबों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह मानवीय संवेदनाओं और पीड़ित के मानसिक व शारीरिक आघात को समझने वाला होना चाहिए। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि:

संवेदनशीलता: पुलिस, अभियोजन पक्ष और न्यायपालिका को पीड़ित के प्रति अधिक संवेदनशील होना पड़ेगा। उनके साथ ऐसा व्यवहार हो, जिससे उन्हें सुरक्षित और समर्थित महसूस हो।

पुनर्वास और मुआवज़ा: पीड़ित को सिर्फ न्याय का इंतज़ार ही नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे आर्थिक मुआवज़ा, मनोवैज्ञानिक सहायता और सामाजिक पुनर्वास भी मिलना चाहिए ताकि वह अपने जीवन को फिर से सामान्य बना सके।

कानूनी बदलाव: उन्होंने संकेत दिया कि मौजूदा आपराधिक कानूनों में ऐसे बदलाव किए जाने चाहिए, जो पीड़ित के अधिकारों को मज़बूत करें और उन्हें न्याय प्रक्रिया में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने का मौका दें।

यह कार्यशाला ऐसे समय में हुई है जब देश में आपराधिक कानूनों में बड़े बदलावों पर चर्चा चल रही है, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) जैसे पुराने कानूनों की जगह नए विधेयक लाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री का यह बयान दर्शाता है कि इन बदलावों में पीड़ित के दृष्टिकोण को शामिल करना कितना ज़रूरी है।

यह एक स्वागत योग्य कदम है, जो भारतीय न्याय प्रणाली को और अधिक मानवीय और न्यायपूर्ण बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। अगर यह विचार ज़मीन पर उतरता है, तो यह अनगिनत पीड़ितों के लिए आशा की एक नई किरण लेकर आएगा।

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