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Up Kiran, Digital Desk: भारत और चीन के बीच लंबे समय से चला आ रहा तनाव अब धीरे-धीरे नरम होता दिखाई दे रहा है। पांच साल पहले सीमा पर हुए ख़ूनी संघर्ष ने दोनों देशों की कूटनीतिक राह को गहरा झटका दिया था। लेकिन अंतरराष्ट्रीय हालात, खासकर अमेरिकी नीतियों में आए बदलाव, एशिया की इन दो ताक़तों को फिर से एक-दूसरे के करीब ला रहे हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" सोच और ऊंचे टैरिफ़ ने भारत समेत कई देशों को झटका दिया है। भारत साफ कर चुका है कि वह किसी भी हाल में दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है। यही रुख अब उसे नए समीकरणों की ओर धकेल रहा है।

मोदी की चीन यात्रा

2018 के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन की यात्रा पर जा रहे हैं। वे शी जिनपिंग द्वारा आयोजित शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है, जब अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर 50% तक का शुल्क लगा दिया है।

यह सम्मेलन सिर्फ भारत और चीन के बीच संबंधों की गर्माहट का इशारा नहीं करता, बल्कि रूस, पाकिस्तान, ईरान और मध्य एशियाई देशों की मौजूदगी यह जाहिर करती है कि शंघाई सहयोग संगठन (SCO) वैश्विक शक्ति संतुलन में नई भूमिका अदा करने की तैयारी कर रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और चीन की नजदीकियां अमेरिका के लिए चिंता का सबब हैं, क्योंकि बीते वर्षों में वाशिंगटन ने पूरी कोशिश की थी कि भारत को एक रणनीतिक साझीदार बनाकर चीन के बढ़ते प्रभुत्व का मुकाबला किया जाए।

बदलती विदेश नीति और अमेरिकी नुकसान

वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक स्टिमसन सेंटर की विशेषज्ञ युन सन का कहना है कि अब भारत यह भरोसा नहीं कर सकता कि अमेरिका से हमेशा मजबूत समर्थन मिलेगा। चीन मानता है कि अमेरिका की नीतियों में हुए बदलाव ने भारत को अपनी विदेश नीति को नए सिरे से दिशा देने पर मजबूर किया है।

अमेरिका ने कई वर्षों तक भारत के साथ रक्षा सहयोग, सैन्य अभ्यास और तकनीकी साझेदारी बढ़ाकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन को संतुलित करने की कोशिश की थी। लेकिन अगर भारत इस रणनीतिक धुरी से खिसकता है, तो यह अमेरिका के लिए एक मुश्किल नतीजा साबित होगा।

रिश्तों की पृष्ठभूमि

भारत और चीन के संबंध दशकों में कई उतार-चढ़ाव से गुज़रे हैं। आज़ादी के बाद जब दोनों देशों ने कूटनीतिक रिश्तों की शुरुआत की, तब "हिंदी-चीनी भाई-भाई" की भावना हावी थी। लेकिन 1962 के युद्ध ने इस भरोसे को तोड़ दिया और अविश्वास की लंबी परछाई छोड़ दी।

2020 की गलवान घाटी की हिंसा ने हालात को सबसे ज़्यादा बिगाड़ा। उस संघर्ष में कम से कम 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए। हालांकि चीन को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन दोनों पक्षों के बीच गहरी खाई और चौड़ी हो गई।

आज जब मोदी और शी एक ही मंच पर बैठेंगे, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह मुलाकात केवल कूटनीतिक औपचारिकता रह जाएगी या फिर एशिया की राजनीति में वाकई एक नया अध्याय शुरू होगा।

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