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Up Kiran , Digital Desk: तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन पिछले कुछ समय से लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं। उनकी कूटनीतिक चालें और राजनीतिक गतिविधियाँ न केवल तुर्की में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बनी हुई हैं। पाकिस्तान को समर्थन देने से लेकर रूस-यूक्रेन शांति वार्ता की मेजबानी तक एर्दोगन ने अपनी रणनीतिक कुशलता का परिचय दिया है।
पाकिस्तान को समर्थन
एर्दोगन ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया और उसे ड्रोन भी उपलब्ध कराए। उन्होंने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) में भारतीय सेना की कार्रवाई की निंदा की और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की मांग का समर्थन किया। यह पहली बार नहीं है जब एर्दोगन ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया है; उन्होंने पहले भी संयुक्त राष्ट्र में ऐसा किया है।
घरेलू मोर्चे पर सफलता
एर्दोगन ने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) का खात्मा करके एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह पार्टी पिछले चार दशकों से सशस्त्र संघर्ष कर रही थी। इसके अलावा अमेरिका ने सीरिया पर से प्रतिबंध हटाने की घोषणा की है जिससे दमिश्क में अंकारा का प्रभाव और मजबूत हुआ है। ट्रंप प्रशासन ने तुर्की के साथ 300 मिलियन डॉलर की मिसाइल डील भी की है।
राजनीतिक विरोधों का सामना
मार्च अप्रैल और मई के पहले हफ्तों में इस्तांबुल के मेयर एक्रेम इमामोग्लू की गिरफ्तारी के खिलाफ तुर्की में हजारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। आलोचकों का कहना है कि भ्रष्टाचार के आरोपों में इमामोग्लू की गिरफ्तारी राजनीति से प्रेरित है। एर्दोगन ने वैश्विक गतिविधियों की तरफ ध्यान खींचकर घरेलू स्तर पर हो रहे विरोध और मुद्दों से दुनिया का ध्यान हटाने में सफलता पाई है।
वैश्विक मंच पर प्रभाव
एर्दोगन ने अंकारा के बढ़ते प्रभाव का फायदा उठाकर मध्य पूर्व पूर्वी यूरोप दक्षिण एशिया और मध्य यूरोप तक अपनी पकड़ मजबूत की है। इस सप्ताह तुर्की ने रूस-यूक्रेन शांति वार्ता की भी मेजबानी की जिससे वह खुद को यूरोपीय महाद्वीप की युद्ध-पश्चात सुरक्षा संरचना का एक प्रमुख खिलाड़ी साबित करना चाहते हैं। उनकी महत्वाकांक्षाएं सिर्फ यूरोप तक सीमित नहीं हैं; वह पाकिस्तान के मामलों में दखल देकर एशिया में भी अपनी धाक बढ़ाना चाहते हैं।
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