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Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड में इस बार गर्मियों की अपेक्षा मानसून ने जंगलों को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। एक तरफ जहां आमतौर पर गर्मियों में फैलने वाली जंगल की आग चिंता का विषय बनती है, वहीं इस बार मूसलधार बारिश और नदी-गदेरों में आई बाढ़ ने जंगलों और उससे जुड़ी संरचनाओं को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। इसका सीधा असर न केवल वन विभाग पर पड़ा है, बल्कि उन ग्रामीणों और ट्रैकरों पर भी पड़ा है जो इन रास्तों का नियमित इस्तेमाल करते हैं।
वन मार्ग और चौकियों पर प्राकृतिक मार
तेज बारिश और नदियों के उफान के चलते कई पैदल, अश्व और मोटर वन मार्ग बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं। इसके अलावा रेंज कार्यालय, वन चौकियां और कर्मचारियों के आवासीय परिसर भी सुरक्षित नहीं रह पाए। कई जगहों पर चेक डैम और सिंचाई के लिए बिछाई गई पाइप लाइनें टूट गईं, जिससे जल प्रबंधन कार्यों को भी झटका लगा है।
पौधरोपण पर पानी फिरा, जैव विविधता को भी नुकसान
जिन क्षेत्रों में हाल ही में पौधरोपण किया गया था, वहां भी स्थिति गंभीर है। रुद्रपुर रेंज में जलभराव के कारण पौधे सड़ गए, जबकि चंपावत जिले के बूम रेंज में लगाए गए रुद्राक्ष के पौधे बर्बाद हो गए। बन्नाखेड़ा रेंज में चूनाखान नाले के कारण वन क्षेत्र में गहरी कटान हुई है। जौलासाल रेंज में कालेरिया नदी और गड़प्पू में बौर नदी के कटाव ने जैव विविधता को सीधा नुकसान पहुंचाया।
आरक्षित वन क्षेत्र भी चपेट में
उत्तरकाशी के धराली और हर्षिल के आरक्षित जंगलों में लगभग 100 से 120 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ है। भयंकर बारिश और गदेरों के बहाव के कारण कई पेड़ उखड़कर गिर गए हैं। इससे न सिर्फ जंगलों की हरियाली पर असर पड़ा है, बल्कि वन्यजीवों का आवास क्षेत्र भी खतरे में पड़ गया है।
आग कम, पर बारिश ने बढ़ाई चिंता
जहां एक ओर इस साल जंगल की आग अपेक्षाकृत कम रही, वहीं दूसरी ओर बारिश ने वन विभाग की चुनौतियों को और बढ़ा दिया। जुलाई से सितंबर के बीच हुई तेज बारिश ने आग की समस्या को तो घटा दिया, लेकिन इससे आपदा जैसी स्थितियां कई इलाकों में पैदा हो गईं।