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Up Kiran, Digital Desk: 5 अगस्त को आई विनाशकारी आपदा ने धराली गांव को इस कदर प्रभावित किया कि अब यहां हर पत्थर और मलबे में संघर्ष और साहस की कहानी सुनाई देती है। एक सप्ताह का समय बीत चुका है, लेकिन त्रासदी का असर अब भी गांव के हर नुक्कड़ में महसूस किया जा रहा है। गांव की जीवन-रेखा, जो कभी खेतों और घरों से जुड़ी थी, आज मलबे में खो गई है। अब यहां हर सुबह एक नई उम्मीद के साथ अपनों को ढूंढने की जद्दोजहद शुरू होती है।
राहत कार्यों की शुरुआत तो हुई है, और कुछ सुविधाओं की बहाली भी की गई है, लेकिन जिन लोगों ने सब कुछ खो दिया है, उनके लिए अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाना एक कठिन संघर्ष बन चुका है।
मलबे में अपनों के निशान की तलाश
पिछले एक सप्ताह से सेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवान लगातार मलबे में दबे लापता लोगों को तलाशने के लिए मेहनत कर रहे हैं। मलबे का क्षेत्र लगभग एक से दो किलोमीटर तक फैला हुआ है। ढह चुकी इमारतों और होटलों के अवशेषों को सावधानी से हटाया जा रहा है ताकि किसी सुराग का पता मिल सके। इन जवानों का दिन-रात का काम सिर्फ एक ही लक्ष्य की ओर केंद्रित है: अपनों को ढूंढना।
इस आपदा ने न केवल गांव की धारा को बदल दिया है, बल्कि लोगों की दिनचर्या भी पूरी तरह उलट कर रख दी है। पहले जहां किसान अपने बाग-बगिचों में काम करते थे, अब वही लोग अपनी सुबह की शुरुआत राहत शिविरों और आपदा स्थल से करते हैं। सेब, गोभी, ब्रोकली, और राजमा जैसी नकदी फसलों की कटाई की योजना बदल चुकी है। आज वे सिर्फ एक ही चीज की तलाश में हैं – मलबे में दबे अपने अपनों का कोई संकेत मिल जाए, ताकि कुछ उम्मीद का आभास हो।
कठिन समय में भी जीवन की उम्मीद
इतना बड़ा संकट झेलने के बाद भी धराली के लोग उम्मीद का दामन नहीं छोड़ रहे। उनके चेहरे पर दर्द और कष्ट की छाया तो है, लेकिन साथ ही उनकी आंखों में एक अनकही उम्मीद भी है। इस विपत्ति के बीच, एक बार फिर जीवन को बनाने और संवारने का संकल्प जागृत हो रहा है। मलबे के ढेर के बीच बिखरी आशाओं के बीच, लोगों ने उम्मीद का दीप जलाए रखा है।
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