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वक्फ कानून के खिलाफ उठी आवाज़ ने पश्चिम बंगाल को हिंसा की चपेट में ला दिया है। राज्य के कई जिलों में हालात बेकाबू हो गए हैं, जहां सड़कों पर हिंसा, आगजनी, लूटपाट और अराजकता का माहौल बना हुआ है। सबसे गंभीर स्थिति मुर्शिदाबाद, साउथ 24 परगना और पूर्वी बर्धमान में देखने को मिली है, जहां इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) के कार्यकर्ताओं ने हिंसा फैलाने में अहम भूमिका निभाई।

साउथ 24 परगना में हिंसा का ताज़ा चेहरा

सोमवार को साउथ 24 परगना जिले के भांगरा इलाके में हिंसा की नई लहर देखने को मिली। ISF कार्यकर्ताओं ने जमकर उत्पात मचाया। उन्होंने न सिर्फ पुलिस की गाड़ियों को नुकसान पहुंचाया बल्कि दुकानों में तोड़फोड़ और पत्थरबाजी की। कई दोपहिया वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया और हाईवे को घंटों के लिए जाम कर दिया गया।

पुलिस की ओर से हालात संभालने की कोशिश की गई लेकिन जब उपद्रवियों ने बैरिकेडिंग तोड़ दी तो मजबूरी में पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। पूर्वी बर्धमान में भी इसी तरह की तस्वीर देखने को मिली, जहां प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर हमला किया और जगह-जगह सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया।

धुलियान: खौफ और पलायन

पिछले शुक्रवार को मुर्शिदाबाद के धुलियान इलाके में हुई हिंसा ने पूरे इलाके को दहशत में डाल दिया है। यहां हिंदू समुदाय के लोग इतने डरे हुए हैं कि वे अपने घरों से निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। BSF द्वारा फ्लैग मार्च के बाद ही कुछ हिम्मत दिखी और लोग घरों से बाहर आए। दंगाइयों ने न केवल मंदिरों और घरों को निशाना बनाया, बल्कि दुकानों को भी आग के हवाले कर दिया।

स्थिति इतनी बिगड़ गई कि जान बचाने के लिए लगभग 1000 लोग धुलियान से पलायन कर मालदा पहुंच गए। वहां उन्होंने लालपुर हाई स्कूल में शरण ली, लेकिन मुसीबतों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। प्रशासन ने स्कूल को बंद कर दिया और किसी को बाहर निकलने की इजाजत नहीं दी, जिससे लोगों को खाने-पीने और दवाइयों की भारी किल्लत झेलनी पड़ रही है।

पीड़ितों की आपबीती: दर्द और टूटे सपने

वक्फ कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन के दौरान उपद्रवियों ने जो कुछ भी रास्ते में मिला, उसे तहस-नहस कर दिया। कई हिंदू दुकानदारों का कहना है कि उनकी दुकानों में घुसकर लूटपाट की गई, और उन्हें पूरी तरह से जला दिया गया। वर्षों की मेहनत से खड़ा किया गया व्यवसाय कुछ ही घंटों में खाक हो गया।

कई लोगों का कहना है कि इस हिंसा ने उन्हें मानसिक रूप से भी झकझोर दिया है। पीड़ितों को अब राज्य प्रशासन और केंद्र सरकार से उम्मीद है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी और उन्हें न्याय मिलेगा।

राहत कैंप या नजरबंदी?

मालदा के राहत शिविरों में शरण लिए हिंदू परिवारों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। एक तरफ प्रशासन सांप्रदायिक सौहार्द की बात करता है, वहीं दूसरी ओर एक समुदाय का उत्पात और दूसरे समुदाय का डर साफ दिखाई दे रहा है। इन शिविरों में रह रहे लोग खुद को बंदी महसूस कर रहे हैं – जैसे अपने ही देश में, अपने ही घरों से बेदखल कर दिए गए हों।

सुरक्षा के इंतजाम और ताजा हालात

मुर्शिदाबाद में हालात अब धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं, लेकिन तनाव अभी भी बरकरार है। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है। बीएसएफ, सीआरपीएफ और आरएएफ की कुल 17 कंपनियां इलाके में तैनात की गई हैं। संवेदनशील क्षेत्रों में लगातार फ्लैग मार्च किया जा रहा है।

पुलिस और प्रशासन का दावा है कि स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन स्थानीय लोगों में डर अभी भी बना हुआ है। सुरक्षा बलों के वरिष्ठ अधिकारी कैंप कर रहे हैं और हालात पर नजर रखे हुए हैं।

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