
रायपुर (छत्तीसगढ़) — एक व्यापक जांच और रिपोर्टों से स्पष्ट हुआ है कि छत्तीसगढ़ में जल जीवन मिशन को लेकर सरकारी आकड़ों में दिखाए जा रहे “निर्माण कार्य” जमीन पर लागू नहीं हो रहे। गांवों में लगे टूटे नल, लीकेज वाले ढांचे और खाली वाटर टैंक इस योजना की स्थिति की बानगी पेश कर रहे हैं।
जांजगीर-चांपा जिले में एक आरटीआई कार्यकर्ता की जांच में सामने आया कि कई गांवों — जैसे भैंसमुड़ी, दहिदा, कर्रा — में मात्र 250–300 मीटर पाइपलाइन बिछाई गई, जबकि पुराने पाइप को नया दिखाकर करोड़ों रुपये का बिल पास कर दिया गया था । बेमेतरा जिले की मीडिया रिपोर्ट में भी यह खुलासा हुआ कि 600 करोड़ के बजट के बावजूद हकीकत में काम आधा‑अधूरा है और पानी की कनेक्शन सप्लाई नहीं हुई।
बिलासपुर और अन्य जिलों से मिली टीवी रिपोर्ट में कहा गया कि कई गांवों में ‘100% कनेक्शन पूरा हुआ’ दिखाया गया, जबकि पाइपलाइन तक नहीं बिछी थी, और ओवरहेड टैंकों में लीकेज से पानी सप्लाई ठप था। जांजगीर-चांपा समाचारों में पानी टैंकों का टेस्ट फेल होना और लीक साबित होना भी दर्ज है।
हाईकोर्ट ने इन रिपोर्ट्स पर सज्जन संज्ञान लेते हुए NGOs, मीडिया और अभियुक्तों से जवाब तलब किया है। न्यायालय ने कहा कि जमीन पर सत्यापन के लिए तकनीकी ऑडिट जरूरी है और अधिकारियों को शीघ्र प्रतिक्रिया देनी चाहिए । विधानसभा में भ्रष्टाचार की शिकायतों पर मंत्री ने कार्रवाई का आश्वासन भी दिया।
केंद्रीय टीम भी मिशन की जांच में जुट गई — 2 जून को रायपुर पहुंचकर पांच मुख्य जिलों में स्थल निरीक्षण शुरू किया गया है । जांच में लगभग तिहाई कार्य ही पूरा पाया गया, जबकि तीन साल की देरी और आर्थिक खर्च में गड़बड़ी सामने आई है।
ग्रामीणों में नाराज़गी गहराई है — कुछ गांवों में दो साल पहले बने टैंक अभी तक पानी नहीं दे रहे, जैसे राजनांदगांव का घोटिया गांव । वहीं बालोद के ओरमा गांव में नल तो लगे, लेकिन सप्लाई बंद है और हैण्डपंप का पानी भी पीने योग्य नहीं।
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