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Up Kiran, Digital Desk: एक लंबे समय से शांत और स्थिर माने जाने वाला लद्दाख बुधवार को अचानक तनाव के केंद्र में आ गया। हज़ारों युवाओं ने सड़कों पर उतरकर केंद्र सरकार से अपनी मांगों के समर्थन में प्रदर्शन किया, जो देखते ही देखते हिंसा में बदल गया। आगजनी, झड़पें और पुलिस के साथ तीखा टकराव—इन सबने पूरे क्षेत्र में डर और चिंता का माहौल बना दिया। इस संघर्ष में अब तक चार लोगों की मौत और 80 से अधिक घायल होने की खबर है। इसके चलते गुरुवार को सुरक्षा एजेंसियों ने सख्ती से कर्फ्यू लागू किया और लगभग 50 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया।
प्रदर्शन के केंद्र में क्या हैं युवाओं की मांगे?
इस विरोध प्रदर्शन की जड़ में चार अहम मांगें हैं:
लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए
संविधान की छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल किया जाए
लोकसभा में लद्दाख की सीटें बढ़ाकर दो की जाएं
क्षेत्र की जनजातियों को 'आदिवासी' दर्जा दिया जाए
इन मांगों का सीधा संबंध न केवल प्रशासनिक स्वायत्तता से है, बल्कि सांस्कृतिक पहचान और संसाधनों की सुरक्षा से भी है। खासकर युवाओं को लगता है कि मौजूदा ढांचा उनकी सामाजिक और आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा करने में असफल रहा है।
छठी अनुसूची: क्यों जरूरी मानते हैं इसे लद्दाख के लोग?
भारत के संविधान की छठी अनुसूची पूर्वोत्तर भारत के कुछ जनजातीय क्षेत्रों को विशेष अधिकार प्रदान करती है। असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम जैसे राज्यों में यह अनुसूची पहले से लागू है। इसके तहत वहां स्वायत्त जिला परिषदें (ADC) बनाई जाती हैं, जिन्हें शिक्षा, भूमि, जंगल, कर और सामाजिक प्रथाओं जैसे मामलों में निर्णय लेने की स्वतंत्रता होती है।
अगर लद्दाख को भी इसी संरचना में शामिल किया जाता है, तो वहां की जनजातीय आबादी—जो कि 97% से अधिक है—अपनी परंपराओं और जमीन के स्वामित्व की रक्षा बेहतर ढंग से कर सकेगी।
प्रशासनिक स्वायत्तता बनाम बाहरी हस्तक्षेप का डर
केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद लद्दाखियों को सबसे बड़ा डर है बाहरी दखल का। लोगों को आशंका है कि बाहरी लोग यहां जमीन खरीद सकते हैं, जिससे स्थानीय संस्कृति, जीवनशैली और संसाधनों पर असर पड़ सकता है। छठी अनुसूची लागू होने पर इस तरह की गतिविधियों पर नियंत्रण पाया जा सकेगा। साथ ही, इससे रोजगार और शिक्षा में स्थानीय युवाओं के लिए आरक्षण सुनिश्चित करने की राह भी खुल सकती है।
क्या बदलेगा अगर लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाए?
अगर यह मांग मान ली जाती है तो लद्दाख को न केवल स्थानीय शासन में ज्यादा भागीदारी मिलेगी, बल्कि पारंपरिक रीति-रिवाज, स्थानीय निर्णय लेने की शक्ति और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार भी सुनिश्चित होगा। स्वायत्त परिषदों को सीमित न्यायिक शक्तियां भी मिलती हैं जिससे छोटे-मोटे विवादों को स्थानीय स्तर पर ही निपटाया जा सकता है। इससे प्रशासन पर बोझ भी कम होगा और फैसले स्थानीय ज़रूरतों के मुताबिक लिए जा सकेंगे।