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Up Kiran, Digital Desk: एक दौर था जब हिंदी सिनेमा पर अमिताभ बच्चन के नाम का सिक्का चलता था। उन्हें 'वन मैन इंडस्ट्री' कहा जाता था और कोई भी उनके आसपास नहीं टिकता था। लेकिन एक सितारा ऐसा था, जिसकी चमक, जिसका स्टाइल और जिसकी फैन फॉलोइंग सीधे तौर पर बिग बी को टक्कर दे रही थी। वह उस दौर के सबसे महंगे एक्टर्स में से एक थे और उनका करियर आसमान की बुलंदियों पर था।

उस सितारे का नाम था - विनोद खन्ना।

जब विनोद खन्ना का जादू सिर चढ़कर बोलता था: विनोद खन्ना सिर्फ एक एक्टर नहीं, बल्कि एक करिश्मा थे। जब वह पर्दे पर आते थे, तो दर्शक अपनी पलकें झपकाना भूल जाते थे। उनकी दमदार आवाज, आकर्षक पर्सनैलिटी और बेहतरीन एक्टिंग का ऐसा मेल था कि प्रोड्यूसर उन पर पैसा लगाने के लिए लाइन में खड़े रहते थे। 'अमर अकबर एंथोनी', 'मुकद्दर का सिकंदर' और 'कुर्बानी' जैसी फिल्मों में उन्होंने यह साबित कर दिया था कि वह किसी भी रोल में जान डाल सकते हैं।

यह वह दौर था जब कई लोग यह मानने लगे थे कि अगर कोई अमिताभ बच्चन के 'शहंशाह' के ताज को चुनौती दे सकता है, तो वह सिर्फ विनोद खन्ना हैं।

और फिर आया वो चौंकाने वाला फैसला

जिस वक्त विनोद खन्ना अपने करियर के शिखर पर थे, उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया जिसने पूरे बॉलीवुड और उनके करोड़ों फैंस को हिलाकर रख दिया। उन्होंने वह किया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।

1982 में, उन्होंने अपना चमकता हुआ करियर, अपना परिवार, पैसा, शोहरत... सब कुछ एक झटके में छोड़ दिया और संन्यासी बन गए। वह अपने आध्यात्मिक गुरु ओशो (भगवान श्री रजनीश) के अनुयायी बन गए और उनके साथ अमेरिका के ओरेगॉन में स्थित 'रजनीशपुरम' आश्रम में जाकर बस गए। वहां वह माली का काम करते थे, बर्तन साफ करते थे और एक आम इंसान की तरह रहते थे। ग्लैमर की दुनिया का बादशाह अब अध्यात्म की शांति में खो चुका था।

क्या थी इस फैसले की वजह: कहा जाता है कि विनोद खन्ना को बॉलीवुड की चकाचौंध वाली दुनिया अंदर से खोखली लगने लगी थी। वह 'मन की शांति' की तलाश में थे, जो उन्हें दौलत और शोहरत में नहीं मिल रही थी।

वापसी, लेकिन तब तक बदल चुकी थी दुनिया

लगभग पांच साल संन्यासी का जीवन बिताने के बाद विनोद खन्ना ने बॉलीवुड में वापसी की। उन्होंने 'इंसाफ' और 'दयावान' जैसी हिट फिल्में भी दीं, लेकिन तब तक बहुत कुछ बदल चुका था। अमिताभ बच्चन अब निर्विवाद रूप से नंबर 1 की कुर्सी पर मजबूती से जम चुके थे।

कई फिल्म पंडित आज भी यह कहते हैं कि अगर विनोद खन्ना ने अपने करियर के उस सुनहरे दौर में वह 5 साल का ब्रेक न लिया होता, तो शायद 70 और 80 के दशक का इतिहास कुछ और होता, और बॉलीवुड का 'शहंशाह' कोई और होता।

विनोद खन्ना सिर्फ एक महान अभिनेता नहीं थे, बल्कि वह एक ऐसे इंसान भी थे जिन्होंने दुनिया को यह दिखाया कि सच्ची खुशी और मन की शांति के आगे दुनिया की कोई भी दौलत और शोहरत मायने नहीं रखती।