गरीबी और गंभीर बीमारी जब एक साथ वार करती है तो ज़िंदगी किस कदर बेबस हो जाती है इसका जीता जागता उदाहरण है पुरानडीह गाँव (बलरामपुर) की कौशल्या देवी। पिछले चार महीनों से यह 30 वर्षीय माँ अपनी तीन साल की मासूम बेटी के साथ खुले आसमान को ही अपना ठिकाना मान चुकी है। गर्भाशय की जानलेवा बीमारी से जूझ रही कौशल्या को अब न मंदिर सहारा देता है न किसी का घर। कभी वह छठ घाट पर रात काटती है तो कभी गांधी मैदान में सिर छिपाने की जगह ढूँढती है। पेट की भूख और शरीर का दर्द दोनों ने मिलकर उसे भीतर से तोड़ दिया है।
कौशल्या के पति विकास कुमार पल्लेदारी का काम करते हैं। उनकी कमाई इतनी कम है कि दो वक़्त की रोटी जुटाना भी किसी चुनौती से कम नहीं। इस तंगहाली में कौशल्या का इलाज करा पाना उनके लिए कल्पना से परे है। विकास हर रोज़ खून पसीना बहाकर अपनी पत्नी और बेटी के लिए किसी तरह भोजन का इंतज़ाम तो कर देते हैं लेकिन बीमारी का बड़ा खर्च उनकी सामर्थ्य से बाहर है।
मानसिक रूप से भी कमज़ोर हो चुकी कौशल्या ने परिवार पर बोझ न बनने का कड़ा फैसला लिया। उनका कहना है वह नहीं चाहतीं कि उनकी वजह से घर के लोग और परेशान हों। इसी पीड़ा के चलते उन्होंने अपने गाँव से दूरी बना ली और आज वह खुले आकाश के नीचे बेसहारा जीवन बिता रही हैं।
गाँव और शहर के लोग उन्हें रोज़ मंदिरों और मैदानों में अपनी बेटी के साथ भटकते देखते हैं। कई लोग उनकी मदद करना चाहते हैं लेकिन सीमित संसाधनों के कारण कुछ कर नहीं पाते। अब गाँव वालों ने मिलकर प्रशासन से ज़ोरदार गुहार लगाई है। उनकी माँग है कि इस बेबस महिला को तत्काल चिकित्सा सुविधा और रहने के लिए आश्रय दिया जाए।
_1665223444_100x75.png)
_326121080_100x75.jpg)
_823271280_100x75.png)
_616156842_100x75.png)
_650762460_100x75.png)