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Up Kiran, Digital Desk- कभी-कभी एक औचक निरीक्षण वो कर जाता है जो सैकड़ों फॉर्मल मीटिंग्स नहीं कर पातीं। शुक्रवार की सुबह कुछ ऐसी ही रही जब कानपुर के जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने रामादेवी स्थित कांशीराम ट्रामा सेंटर का अचानक दौरा किया। गर्मी अपने चरम पर थी ओपीडी के बाहर मरीजों की लंबी कतारें थीं और अंदर... अंदर वो सब कुछ नदारद था जो एक अस्पताल को “सर्विस सेंटर” बनाता है।
200 में से 64 स्टाफ नदारद
यह संख्या सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है बल्कि उस सिस्टम की तस्वीर है जो आम जनता की सेहत का जिम्मेदार है। अस्पताल में कुल 200 मेडिकल स्टाफ मौजूद होने चाहिए थे लेकिन 64 लोग अपनी ड्यूटी से गायब पाए गए। इतना ही नहीं मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) तक सुबह 9 बजे तक नहीं पहुंचे — जबकि उनका ड्यूटी टाइम सुबह 8 से दोपहर 2 बजे तक तय है।
कितनी विडंबना है कि जिस समय मरीज पसीने में भीगकर डॉक्टर के इंतज़ार में खड़े थे उसी समय अस्पताल की सबसे ऊंची जिम्मेदारी वाला व्यक्ति गैरहाज़िर था।
फर्जी हाजिरी और रजिस्टर की कलाकारी
डीएम को जब उपस्थिति रजिस्टर खंगालने को मिला तो एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ। डॉक्टरों और कर्मचारियों ने अपनी मर्ज़ी से फर्जी तरीके से ड्यूटी और हाज़िरी दर्ज कर रखी थी। यह केवल एक अनुशासनहीनता नहीं बल्कि उस भरोसे की चोरी है जो मरीज और सरकार डॉक्टरों पर करते हैं।
पानी तक नसीब नहीं, गर्मी में प्यासा अस्पताल
इतनी ही नहीं अस्पताल परिसर में पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी। सोचिए जहां बीमार और उनके तीमारदार घंटों इंतज़ार में होते हैं वहां पानी जैसी बुनियादी सुविधा भी उपलब्ध न हो? जिलाधिकारी ने इस पर कड़ी फटकार लगाई और तुरंत व्यवस्था सुधारने के निर्देश दिए।
पत्रकारों से बातचीत में जिलाधिकारी ने साफ कहा "स्वास्थ्य सेवाएं सरकार की प्राथमिकता हैं और यह हम सभी का दायित्व है कि ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करें।" उनकी नाराज़गी वाजिब थी क्योंकि जिस सिस्टम में मरीज भरोसा करता है वही सिस्टम अगर मनमानी पर उतर आए तो परिणाम भयावह हो सकते हैं।
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