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Up kiran,Digital Desk : दोस्तों, आज (25 नवंबर 2025) जब धर्मेंद्र जी हमारे बीच नहीं हैं, तो पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। लेकिन दिल्ली के जाट समुदाय और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों की आंखों में एक अलग ही नमी है। उन्हें याद आ रहा है साल 2007, जगह थी दिल्ली का तालकटोरा स्टेडियम और मौका था 'जाट सम्मेलन' का।

वह नजारा आज भी लोगों के जेहन में ताजा है। मंच पर हरियाणवी लोकगीत बज रहे थे, नगाड़े की चोट पड़ रही थी और सामने सूट-बूट पहने धर्मेंद्र जी थे। लेकिन जैसे ही नगाड़ा बजा, धर्मेंद्र जी का वो 'ही-मैन' वाला स्टारडम कहीं पीछे छूट गया और सामने आ गया अपनी मिट्टी से जुड़ा एक खुशमिजाज इंसान। वो नगाड़े की थाप पर ऐसे नाचे जैसे अपने गांव के चौपाल में नाच रहे हों।

"मुझे यहां अपनों की खुशबू आ रही है"

उस दिन वहां मौजूद लोगों का कहना है कि धर्मेंद्र सिर्फ भाषण देने नहीं आए थे, वो रिश्ते निभाने आए थे। जैसे ही उन्होंने माइक थाम कर भीड़ की तरफ देखा, उनका गला भर आया। उन्होंने भावुक होकर कहा, "आज आप सबके बीच आकर मुझे एक अजीब सी खुशबू आ रही है... कहीं बाप की शफकत (दया), कहीं भाई का प्यार, तो कहीं बच्चों का स्नेह। ऐसा लग रहा है मैं घर आ गया हूं।"

यह सुनते ही स्टेडियम में सन्नाटा छा गया और अगले ही पल तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। उन्होंने सीना ठोक कर कहा था, "मैं उस कौम का बच्चा हूं जिसे दुनिया 'अन्नदाता' कहती है।" यह लाइन सुनकर वहां मौजूद हर किसान का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था।

हंसी-मजाक और वो 'देसी' तंज

धर्मेंद्र जी अपनी हाजिरजवाबी के लिए भी जाने जाते थे। उन्होंने हंसते हुए एक किस्सा सुनाया जो आज भी मशहूर है। उन्होंने कहा, "दुनिया कहती है कि आदम और हव्वा ने गंदम (गेहूं) खाया तो उन्हें होश आया। लेकिन मुझे लगता है कि हम जाट भाई तो उनसे भी पहले पैदा हो चुके थे।" इस पर पूरे स्टेडियम में ठहाके गूंज उठे थे।

जब उनसे किसी ने पूछा कि वो किस तरह के जाट हैं, तो उन्होंने अपने फिल्मी और देसी अंदाज को मिलाते हुए कहा था, "अरे, मैं वो जाट हूं जो 'खाट खड़ी' कर देता है!"

"हम दिमाग से नहीं, कलेजे से काम लेते हैं"

उस भाषण में उन्होंने जाटों की उस छवि को भी बड़े प्यार से बयां किया जिसे अक्सर लोग 'अक्खड़' समझ लेते हैं। उन्होंने कहा था, "दिमाग तो भगवान ने सबको दिया है और काम सब उससे लेते हैं। लेकिन मालिक ने हमें 'कलेजा' दिया है और हम दिमाग से ज्यादा अपने कलेजे (दिल) का इस्तेमाल करते हैं।"

नजफगढ़ के एक स्थानीय निवासी प्रीतम डागर याद करते हैं कि कैसे धर्मेंद्र जी ने उस दिन कहा था— "लोग हमें 'लठ्ठ' कहते हैं, पर उन्हें बता देना कि जब प्यार की बात आएगी, तो वहां भी बाजी जाट ही मार ले जाएगा। हम दिलों पर राज करना जानते हैं।"

किसान के दर्द पर छलके थे आंसू

भाषण के आखिर में धर्मेंद्र जी गंभीर हो गए थे। उन्होंने किसान आत्महत्याओं का मुद्दा उठाते हुए भारी मन से कहा था कि जो किसान दुनिया का पेट भरता है, वो खुदकुशी क्यों कर रहा है? वो एक जाट किसान है, जो अपनी आन पर आंच नहीं आने देता। उनकी बातों में उस दिन एक स्टार नहीं, बल्कि एक किसान का दर्द बोल रहा था।

आज धर्मेंद्र जी चले गए हैं, लेकिन 2007 की उस शाम की गूंज और उनका वो अपनापन लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेगा।