
Up Kiran, Digital Desk: बिहार की राजनीति में 'नाराज़गी' और 'समझौते' का खेल बड़ा पुराना है। NDA में सीटों का बँटवारा तो हो गया है, लेकिन हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के मुखिया जीतन राम मांझी का दर्द छलक ही आया है। उनकी पार्टी को सिर्फ 6 सीटें मिली हैं, और इस फैसले पर उन्होंने साफ-साफ कह दिया है, "हाँ, हम परेशान हैं।"
दिल्ली में बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ हुई बैठक के बाद जब सीटों का ऐलान हुआ, तो मांझी की उम्मीदों पर पानी फिर गया। वे कम से कम 15 सीटों की मांग कर रहे थे, लेकिन उनकी झोली में आईं सिर्फ 6 सीटें।
इस फैसले के बाद पटना लौटे मांझी ने मीडिया से बात करते हुए अपनी टीस ज़ाहिर की। उन्होंने कहा, "जब घर बड़ा होता है तो कई बार कुछ चीज़ें अपने मन की नहीं होतीं, पर घर को टूटने से बचाने के लिए चुप रहना पड़ता है।" उनका इशारा साफ था कि वह खुश नहीं हैं, लेकिन गठबंधन धर्म निभा रहे हैं।
जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या वह इस फैसले का विरोध करेंगे, तो उन्होंने बड़ी सधी हुई बात कही, "हम परेशान तो हैं, लेकिन हम NDA के फैसले का विरोध नहीं करेंगे। हमारे लिए गठबंधन बचाना ज़्यादा ज़रूरी है। हमने अपनी बात रख दी थी, पर जो फैसला हुआ, हम उसके साथ हैं।"
मांझी के इस बयान के गहरे सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। एक तरफ तो वह यह दिखाकर अपनी ताकत बनाए रखना चाहते हैं कि वह 'नाराज़' हैं, वहीं दूसरी तरफ वह NDA को यह भरोसा भी दिला रहे हैं कि वह गठबंधन छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। इस बयान ने बिहार की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है कि क्या मांझी की यह 'मजबूरी' है या कोई सोची-समझी 'रणनीति'।