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Up Kiran, Digital Desk: जब दिल्ली में जात-पात की राजनीति टूट सकती है तो बिहार में क्यों नहीं- ये सवाल सिर्फ एक विचार नहीं था बल्कि एक आंदोलन का बीज था। इस वाक्य के साथ ही प्रशांत किशोर ने 'जनसुराज' की नींव रखी थी—एक ऐसा राजनीतिक प्रयोग जो बिहार की राजनीति को ‘जातीय सिंडिकेट’ से मुक्त करने का दावा करता था। मगर वक़्त बदला राजनीति की ज़मीनी हकीकतें सामने आईं और अब खुद PK (प्रशांत किशोर) जातीय गणित का सहारा लेने को मजबूर दिख रहे हैं।

जनसुराज की शुरुआत ‘सर्वसमाज की बात’ से हुई मगर जैसे-जैसे चुनावी रणभूमि नज़दीक आई PK का आदर्शवाद ‘BRDK’ जातीय फॉर्मूले में ढलता गया। आइए इस फॉर्मूले की तह में जाकर समझते हैं कि कैसे प्रशांत किशोर ने सत्ता की चाभी पाने के लिए जातीय मोर्चाबंदी को अपनाया।

B माने ब्राह्मण: नेतृत्व की छाया में प्रभाव की तलाश

प्रशांत किशोर की प्रदेश यात्रा के दौरान एक बात साफ दिखी—ब्राह्मण समाज उन्हें नेतृत्व का विकल्प मानने लगा। ऐसा नेतृत्व जो ना सिर्फ नीति जानता है बल्कि सत्ता का भी वास्तुकार रह चुका है। नीतीश कुमार कैप्टन अमरिंदर और नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं को रणनीति देने वाला यह व्यक्ति खुद भी सीएम बन सकता है—यह धारणा धीरे-धीरे बनती गई।

मगर ब्राह्मण वोट बैंक कोई सीधा खेल नहीं। यह तब तक उनके पक्ष में नहीं आएगा जब तक वह बीजेपी और कांग्रेस के ब्राह्मण-हितैषी एजेंडे को न चुनौती दें। बिहार में ब्राह्मण आबादी महज़ 3.65% है मगर यह तब भी असरदार है खासकर शहरी और अर्ध-शहरी सीटों पर।

R मतलब राजपूत: उदय सिंह की एंट्री और परंपरा का सहारा

राजपूत वोट बैंक बिहार में लंबे समय से बीजेपी का मजबूत आधार रहा है वहीं कुछ हिस्सों में राजद की पकड़ भी देखी गई। इस जातीय वोट को साधने के लिए PK ने चाल चली—राजपूत नेता और पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह को जनसुराज का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया।

राजपूतों की 3.45% आबादी सीधे तौर पर 30 से अधिक विधानसभा सीटों को प्रभावित करती है। अब सवाल है कि क्या उदय सिंह जनसुराज को वह परंपरागत राजपूत वोट दिला पाएंगे? या फिर यह भी ब्राह्मण मतों की तरह एक भ्रम बनकर रह जाएगा?

D मतलब दलित: मनोज भारती के सहारे बड़ा दांव

दलित वोट हर चुनाव में किंगमेकर की भूमिका निभाता है। बिहार की 17% दलित आबादी राजनीतिक रूप से बेहद सक्रिय है और परंपरागत तौर पर कई पार्टियों में बंटी हुई है—चिराग पासवान से लेकर जीतन राम मांझी तक।

प्रशांत किशोर ने इस वोट बैंक को लुभाने के लिए मनोज भारती को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जो दलित समुदाय से आते हैं। यह एक रणनीतिक कदम था मगर सवाल यह है कि क्या PK पासवान-मांझी जैसे स्थापित नामों के बीच अपनी जगह बना पाएंगे?

K मतलब कुर्मी: नीतीश को मात देने की तैयारी

राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अगर जातिगत आधार पर हो तो नीतीश कुमार के कुर्मी वोट बैंक को साधना सबसे बड़ा टास्क बन जाता है। PK ने इस चुनौती का जवाब खोजा पूर्व IAS और जेडीयू के पूर्व रणनीतिकार आरसीपी सिंह के रूप में जो खुद भी कुर्मी जाति से आते हैं।

नीतीश 'अवधिया' कुर्मी हैं जबकि आरसीपी 'घमैला'। कुर्मी वोट बैंक खुद में ही विभाजित है मगर PK के लिए यह एक दोहरा लाभ है—नीतीश को उन्हीं के गढ़ में घेरना और कुर्मी वर्ग में एक नया विकल्प पेश करना।

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