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Up Kiran , Digital Desk: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को अक्सर उसकी सफलताओं और विश्वसनीय प्रक्षेपणों के लिए जाना जाता है। मगर कभी-कभी सबसे अनुभवी संस्थाएं भी तकनीकी झटकों का सामना करती हैं। 2025 की शुरुआत में इसरो को एक ऐसी ही दुर्लभ विफलता का सामना करना पड़ा जब PSLV-C61 मिशन तकनीकी विसंगति के चलते अधूरा रह गया।

इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि आखिर हुआ क्या तीसरे चरण में क्या तकनीकी खामी आई और यह विफलता भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए क्या मायने रखती है।

PSLV-C61 मिशन: एक नजर में

6 जनवरी 2025 की सुबह 5:59 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से PSLV-C61 ने उड़ान भरी। इसके साथ EOS-09 नामक एक अत्याधुनिक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह को सूर्य समकालिक ध्रुवीय कक्षा (SSPO) में स्थापित करने की योजना थी।

प्रमुख चरण

PS1 और PSOM बूस्टर: सामान्य फायरिंग और पृथक्करण

PS2: तरल ईंधन चरण – सामान्य

PS3: ठोस रॉकेट मोटर – यहीं आई तकनीकी गड़बड़ी

EOS-09 की तैनाती: नहीं हो पाई

क्या हुआ तीसरे चरण में

PSLV के तीसरे चरण में एक हाई थ्रस्ट ठोस रॉकेट मोटर का प्रयोग होता है जो लगभग 240 किलोन्यूटन थ्रस्ट पैदा करता है। यह स्टेज मिशन की सफलता में निर्णायक भूमिका निभाता है क्योंकि यह उपग्रह को उसकी लक्षित कक्षा तक ले जाने के लिए आवश्यक वेग प्रदान करता है।

इस बार क्या अलग हुआ

तीसरे चरण की फायरिंग के दौरान एक विसंगति (anomaly) दर्ज की गई। इस विसंगति ने रॉकेट को उसके निर्धारित मार्ग से भटका दिया जिससे उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने की प्रक्रिया अधूरी रह गई। ISRO प्रमुख एस. सोमनाथ ने पुष्टि की कि मिशन को इसी विसंगति के चलते बीच में ही निरस्त करना पड़ा।

तकनीकी और मिशन स्तर पर प्रभाव

EOS-09 एक मल्टी-रोल सैटेलाइट था जिसे दिन और रात किसी भी मौसम में पृथ्वी की इमेजिंग करने के लिए डिजाइन किया गया था। इसके मुख्य उपयोग थे:

कृषि निगरानी

शहरी नियोजन

आपदा प्रबंधन

सीमा सुरक्षा

इस उपग्रह को डी-ऑर्बिटिंग ईंधन के साथ डिजाइन किया गया था ताकि मिशन पूरा होने के बाद यह अंतरिक्ष मलबे का हिस्सा न बने। यही पहलू इसरो की सतत अंतरिक्ष नीति का प्रतिबिंब था जिसे इस मिशन में भी प्रमुखता दी गई थी।

आगे की राह: जांच और सुधार

यह मिशन PSLV की 63वीं उड़ान थी और PSLV-XL कॉन्फ़िगरेशन की 27वीं उड़ान। अब एक अंदरूनी समिति इस घटना के पीछे के कारणों की गहराई से जांच करेगी जिसमें उड़ान डेटा और टेलीमेट्री की बारीकी से पड़ताल की जाएगी।

ISRO पहले भी ऐसी स्थितियों से गुजरा है और हर बार और अधिक मज़बूत होकर उभरा है। यह विफलता एक सीखने का अवसर बनकर आने वाले मिशनों को और भी ज़्यादा मज़बूत और भरोसेमंद बनाएगी।

 

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