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Up Kiran , Digital Desk: हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य संघर्ष ने वैश्विक मंच पर एक नई बहस को जन्म दे दिया है: क्या भारत अब स्वदेशी रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भर हो चुका है।
इस सवाल का उत्तर शायद हाल ही में हुए हमले में छिपा है जब भारत ने पाकिस्तान पर 15 ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें दागीं जिनमें से 11 ने दुश्मन के एयरबेस को निशाना बनाकर उन्हें पूरी तरह निष्क्रिय कर दिया। यह ऑपरेशन न केवल रणनीतिक रूप से अहम था बल्कि यह भारत के रक्षा क्षेत्र की तकनीकी आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी बन गया।
ब्रह्मोस: भारत की सबसे घातक मिसाइल
घातक ब्रह्मोस मिसाइल को दुनिया की सबसे तेज़ सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों में गिना जाता है। इसकी गति लगभग 2.8 से 3.0 मैक (आवाज़ की गति से तीन गुना तेज) होती है। यह ज़मीन हवा पानी — तीनों माध्यमों से छोड़ी जा सकती है और अपने लक्ष्य को केवल 1 मीटर के दायरे में सटीकता से भेदने की क्षमता रखती है।
इस मिसाइल की ताजगी भरी सफलता के बाद भारत को विभिन्न देशों से इसे खरीदने के प्रस्ताव मिलने लगे हैं। इनमें खास बात यह है कि कुछ ऐसे मुस्लिम देश भी हैं जिन्होंने अब तक भारत से रक्षा उपकरण खरीदने में हिचक दिखाई थी मगर अब ब्रह्मोस के प्रभाव से वे भी भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
ब्रह्मोस की पहली डील: फिलीपींस बना पहला ग्राहक
भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल की पहली विदेशी डील फिलीपींस के साथ की थी। जनवरी 2022 में फिलीपींस ने 374 मिलियन डॉलर की लागत से तीन ब्रह्मोस बैटरी खरीदने का करार किया। अप्रैल 2025 में भारत ने दूसरी खेप की डिलीवरी भी सफलतापूर्वक पूरी की।
इसके बाद भारत और वियतनाम के बीच भी इस मिसाइल को लेकर समझौता हुआ। फिलहाल दोनों देश नौसेना क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और ब्रह्मोस इस दिशा में एक बड़ा हथियार बनकर उभरा है।
ये देश भी दिखा रहे हैं गहरी रुचि
भारत की सैन्य कार्रवाई के बाद ब्रह्मोस मिसाइल को लेकर जिन देशों ने रुचि दिखाई है उनमें शामिल हैं-
इंडोनेशिया — बातचीत अंतिम दौर में
थाईलैंड सिंगापुर ब्रुनेई — सामरिक खरीद में रुचि
ब्राज़ील चिली अर्जेंटीना वेनेज़ुएला — लैटिन अमेरिका से मांग
मिस्र सऊदी अरब UAE कतर ओमान — खाड़ी देशों की बढ़ती दिलचस्पी
भारत के रक्षा निर्यात के इतिहास में यह एक टर्निंग पॉइंट के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि अब वह अपने हथियार सिर्फ मित्र देशों को ही नहीं बल्कि रणनीतिक रूप से विविध राष्ट्रों को भी बेचने की ओर बढ़ रहा है।
ब्रह्मोस बेचने के लिए रूस की मंजूरी क्यों जरूरी
ब्रह्मोस एयरोस्पेस भारत और रूस का संयुक्त उपक्रम (Joint Venture) है जिसकी स्थापना 1998 में हुई थी। इसमें तकनीकी और वित्तीय साझेदारी 50-50 फीसदी की है। ब्रह्मोस का नाम भी भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी से मिलकर बना है।
किसी भी तीसरे देश को ब्रह्मोस बेचने के लिए भारत को रूस की औपचारिक सहमति लेनी पड़ती है। यह सहमति MTCR (Missile Technology Control Regime) के नियमों और दोनों देशों के रक्षा सहयोग समझौतों के तहत आवश्यक है।
अब तक रूस इस नीति में सहयोगी भूमिका निभाता रहा है क्योंकि भारत की मिसाइल डिप्लोमेसी से उसे भी भू-राजनीतिक लाभ मिलते हैं — खासकर उन क्षेत्रों में जहां अमेरिका या चीन की पकड़ मजबूत नहीं है।
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