
Up Kiran, Digital Desk: बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदुओं की स्थिति पर नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के एक बयान ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। यूनुस ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों की खबरों को "निराधार" बताया था, जिसकी एक मानवाधिकार संस्था ने कड़ी निंदा की है।
सेंटर फॉर रिसर्च एंड सेक्युलरिज्म (CRSS), जो बांग्लादेश और दक्षिण एशिया में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए काम करती है, ने मोहम्मद यूनुस के इस बयान को "असंवेदनशील और जमीनी हकीकत से कोसों दूर" बताया है।
CRSS ने क्या कहा: CRSS ने एक बयान जारी कर कहा है कि यूनुस का यह दावा कि "बांग्लादेश में कोई अल्पसंख्यक उत्पीड़न नहीं है," चौंकाने वाला है। संस्था ने याद दिलाया कि खुद मोहम्मद यूनुस ने कुछ समय पहले हुई हिंसा के दौरान हिंदुओं को "अभूतपूर्व सुरक्षा" देने का वादा किया था, लेकिन बाद में वह अपनी बात से मुकर गए।
संस्था ने यूनुस पर निशाना साधते हुए कहा कि वे एक "चतुर राजनीतिज्ञ" की तरह व्यवहार कर रहे हैं और उनके पास शासन का अनुभव भी नहीं है।
क्या है जमीनी हकीकत: CRSS के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े हैं। हिंदू परिवारों को उनकी जमीन और संपत्ति से बेदखल करने के लिए लगातार निशाना बनाया जा रहा है, और दुर्गा पूजा जैसे त्योहारों के दौरान हिंसा की घटनाएं आम हो गई हैं।
यह बयान ऐसे समय में आया है जब बांग्लादेश एक राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है और छात्र आंदोलन के बाद मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए कहा गया था, हालांकि उन्होंने इससे इनकार कर दिया था।
CRSS ने जोर देकर कहा है कि अगर बांग्लादेश को एक सच्चा लोकतंत्र बनना है, तो उसे अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और अधिकारों को गंभीरता से लेना होगा और अंतरराष्ट्रीय हस्तियों को भी इस मुद्दे पर आंखें नहीं मूंदनी चाहिए।