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Up Kiran, Digital Desk: सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच यमन में तनाव चरम पर पहुंच गया है, जब सऊदी सेना ने यमन के दक्षिणी बंदरगाह शहर मुकल्ला पर तेज़ी से बमबारी की। इससे दोनों देशों के रिश्ते में गहरा संकट पैदा हुआ। यमन की सऊदी समर्थित सरकार ने इस हमले के बाद यूएई की सेना को केवल 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया, जिसके बाद यूएई ने अपनी शेष सेनाओं को वापस बुलाने का निर्णय लिया। यह संघर्ष भारत जैसे देशों के लिए बड़ी कूटनीतिक और आर्थिक चिंता का कारण बन सकता है, जो इन दोनों देशों के साथ गहरे व्यापारिक और रणनीतिक रिश्तों में जुड़े हुए हैं।

क्यों बिगड़ा माहौल

यमन के मुकल्ला शहर में हुए ताज़ा हवाई हमले के बाद तनाव और बढ़ गया। सऊदी अरब का कहना है कि उसने वह हवाई हमला यूएई समर्थित अलगाववादी समूहों को विदेशी सैन्य सहायता पहुँचाने के लिए इस्तेमाल किए गए एक डॉक को निशाना बनाकर किया था। सऊदी अरब का दावा है कि हमला यूएई के एक हथियारों के कार्गो पर किया गया था। हालांकि, यूएई ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि वह कार्गो केवल उनके सैन्य इकाइयों के लिए सामान और रसद था, न कि हथियारों का कार्गो।

24 घंटे का अल्टीमेटम और यूएई की वापसी

हमले के बाद यमन की सऊदी समर्थित सरकार ने यूएई को अल्टीमेटम देते हुए 24 घंटे में देश छोड़ने की मांग की। यमन में सऊदी समर्थित राष्ट्रपति नेतृत्व परिषद (PLC) के प्रमुख रशद अल-अलीमी ने यूएई के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए उनके साथ रक्षा समझौते को रद्द कर दिया। उन्होंने यूएई पर आरोप लगाया कि उसने यमन के दक्षिणी हिस्से में विद्रोहियों को उकसाया और देश की एकता को तोड़ने की कोशिश की।

इस अल्टीमेटम के बाद यूएई ने अपनी शेष आतंकवाद विरोधी इकाइयों को यमन से वापस बुलाने का ऐलान किया। हालांकि, यूएई ने 2019 में अपनी प्रमुख सैन्य उपस्थिति समाप्त कर दी थी, फिर भी कुछ इकाइयां अब तक वहां मौजूद थीं, जिन्हें अब वापस बुलाया गया है।

सऊदी-यूएई विवाद की जड़ें

सऊदी अरब और यूएई कभी खाड़ी क्षेत्र में सुरक्षा के दो प्रमुख स्तंभ माने जाते थे, लेकिन यमन में उनके दृष्टिकोण अब अलग हो गए हैं। सऊदी अरब यमन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार का समर्थन करता है, जबकि यूएई ने यमन के दक्षिणी हिस्से में सक्रिय अलगाववादी समूहों, खासकर 'दक्षिणी ट्रांजिशनल काउंसिल' का समर्थन किया है। यह अलगाववादी समूह यमन के दक्षिणी हिस्से में स्वायत्तता या अलग देश की मांग कर रहे हैं।

सऊदी अरब का मानना है कि यूएई ने अलगाववादियों का समर्थन करके यमन को तोड़ने की कोशिश की है, जिससे सऊदी अरब की सीमाओं पर अस्थिरता पैदा हो रही है।

सऊदी अरब की 'रेड लाइन'

सऊदी अरब ने इस विवाद में यूएई के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। उसने यूएई पर आरोप लगाया है कि उसने यमन के दक्षिणी अलगाववादियों पर दबाव डालकर उन्हें ऐसे सैन्य अभियान में शामिल किया, जो सऊदी अरब की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हैं। सऊदी अरब ने अपनी सुरक्षा को ‘रेड लाइन’ घोषित किया है, और कहा है कि यूएई समर्थित मिलिशिया की गतिविधियाँ उसकी सुरक्षा के लिए सीधा खतरा हो सकती हैं।

यूएई ने इन आरोपों का खंडन किया है और कहा कि उनकी नीयत सऊदी अरब की सुरक्षा को कमजोर करने की नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे यमन में किसी भी पक्ष को सऊदी अरब की सीमाओं को निशाना बनाने की अनुमति नहीं देंगे।

क्षेत्रीय वर्चस्व की लड़ाई?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह संघर्ष केवल यमन तक सीमित नहीं है। सऊदी अरब और यूएई के बीच यह दरार अब क्षेत्रीय वर्चस्व की लड़ाई बन गई है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि सऊदी अरब को यह अच्छा नहीं लग रहा है कि यूएई क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभर रहा है, खासकर अरब दुनिया में उसकी बढ़ती स्थिति से सऊदी अरब चिंतित है।

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि 24 घंटे में सेना को हटाने का अल्टीमेटम व्यावहारिक नहीं है। इसे बयानबाजी के तौर पर देखा जा रहा है और वे मानते हैं कि इस विवाद का समाधान पर्दे के पीछे की मध्यस्थता से होगा।

भारत पर प्रभाव

भारत के लिए यह तनाव बहुत बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। सऊदी अरब और यूएई दोनों भारत के बड़े साझेदार हैं, और इन देशों के बीच संघर्ष भारत की आर्थिक स्थिति पर असर डाल सकता है। भारत अपनी तेल ज़रूरतों का बड़ा हिस्सा इन दोनों देशों से आयात करता है। अगर इन देशों के बीच असहमति बढ़ती है, तो तेल आपूर्ति और कीमतों में अस्थिरता पैदा हो सकती है, जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर समस्या हो सकती है।

इसके अलावा, भारत के लिए खाड़ी देशों में काम कर रहे लाखों नागरिकों की सुरक्षा भी चिंता का विषय बन सकती है। अगर संघर्ष गंभीर रूप लेता है, तो इन भारतीयों की नौकरियों पर संकट आ सकता है।

भारत का ड्रीम प्रोजेक्ट और क्षेत्रीय सहयोग

भारत के लिए यमन, सऊदी अरब और यूएई के बीच बढ़ते तनाव का एक और बड़ा असर होगा – भारत-मिडिल ईस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर। यह प्रोजेक्ट इन देशों से होकर यूरोप तक जाएगा। इसके अलावा, भारत का यूएई के साथ मुक्त व्यापार समझौता (CEPA) है और सऊदी अरब के साथ रिफाइनरी परियोजनाओं की योजना है। अगर यह विवाद बढ़ता है, तो इन परियोजनाओं पर भी असर पड़ सकता है।

पाकिस्तान की मध्यस्थता की कोशिश

इस तनाव के बीच पाकिस्तान भी मध्यस्थ की भूमिका निभाने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने सऊदी अरब और यूएई के साथ बातचीत की है और इस विवाद को हल करने के लिए कूटनीतिक प्रयास किए हैं।