Up Kiran, Digital Desk: ईरान में चल रहे आर्थिक संकट ने अब उग्र प्रदर्शन और आंदोलन का रूप ले लिया है। पिछले कुछ दिनों में तेहरान, इस्फहान, शिराज, कराज, मशहद जैसे प्रमुख शहरों में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं। इन प्रदर्शनों में लोग 'तानाशाही मुर्दाबाद', 'मुल्लाओं को जाना होगा' जैसे नारे लगा रहे हैं। ये प्रदर्शन 2022 में महसा अमीनी की मृत्यु के बाद के आंदोलनों से भी बड़े और गहरे असर वाले माने जा रहे हैं।
आंदोलन की शुरुआत: रियाल की गिरावट और महंगाई के खिलाफ आवाज़
आंदोलन की शुरुआत 29 दिसंबर को तेहरान के ग्रैंड बाजार से हुई थी, जहां मोबाइल फोन विक्रेताओं और दुकानदारों ने ईरानी रियाल की गंभीर गिरावट के विरोध में हड़ताल की। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रियाल की कीमत 1.42 मिलियन तक गिर गई, यानी एक डॉलर की कीमत ईरानी रियाल में 14 लाख से ऊपर हो गई। इसके साथ ही महंगाई दर भी 42% से अधिक पहुंच गई, जिसमें खाद्य सामग्री की कीमतों में 72% और स्वास्थ्य सेवाओं में 50% तक का इजाफा हुआ है। इससे आम लोगों की जिंदगी और मुश्किल हो गई है।
विद्यार्थियों का सक्रिय होना और आंदोलन का विस्तार
तीसरे दिन से, यह आंदोलन विश्वविद्यालयों तक फैल गया। तेहरान, इस्फहान और अन्य शहरों के विद्यार्थी भी सड़कों पर आ गए। उन्होंने 'स्वतंत्रता' और 'इस्लामिक गणराज्य मुर्दाबाद' जैसे नारे लगाए। कुछ विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों ने बसीज मिलिशिया की आलोचना की और उन्हें 'आईएसआईएस के समान' कहा। सुरक्षा बलों ने इन प्रदर्शनों को रोकने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया, और कुछ स्थानों पर गोलीबारी की भी खबरें आईं।
ईरान सरकार का प्रतिक्रिया और राजनीतिक दबाव
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियन ने इन आंदोलनों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरकार प्रदर्शनकारियों की 'संगत मांगों' को सुनने के लिए तैयार है। उन्होंने आंतरिक मंत्री को इस मुद्दे पर बातचीत करने का आदेश दिया और केंद्रीय बैंक प्रमुख का इस्तीफा स्वीकार कर नया प्रमुख नियुक्त किया। हालांकि सरकारी मीडिया ने इन आंदोलनों को केवल आर्थिक कारणों तक ही सीमित रखने की कोशिश की है।
क्या अमेरिकी 'मैक्सिमम प्रेशर' नीति ने असर डाला?
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह संकट अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण उत्पन्न हुआ है। डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में 2015 के परमाणु समझौते से अमेरिका का बाहर निकलना और 'मैक्सिमम प्रेशर' नीति ने ईरान की अर्थव्यवस्था पर दबाव डाला। 2025 में ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में प्रतिबंधों को और सख्त किया गया, खासकर जब अमेरिका और इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले किए। इन प्रतिबंधों के कारण ईरान की तेल निर्यात में गिरावट आई और अर्थव्यवस्था गंभीर संकट से जूझने लगी।
अमेरिका और प्रदर्शनकारियों का समर्थन
ट्रंप ने इन आंदोलनों को लेकर कहा था कि ईरान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से खराब हो चुकी है और लोग असंतुष्ट हैं। उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने की निंदा की, लेकिन सत्ता परिवर्तन की बात से इनकार किया। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी इन प्रदर्शनों का समर्थन किया, यह कहते हुए कि ईरान के युवा बेहतर भविष्य की तलाश में हैं। माइक पोम्पियो ने यह भी कहा कि ईरान की जनता मुल्लाओं के भ्रष्टाचार से परेशान है।
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