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Up kiran,Digital Desk : वेनेजुएला की राजनीति में भूचाल लाने वाली और सरकार के खिलाफ सबसे बड़ी आवाज, मारिया कोरीना मचाडो, करीब 11 महीने तक 'गुमनाम' रहने के बाद आखिरकार दुनिया के सामने आ गई हैं। नॉर्वे की राजधानी ओस्लो के एक होटल की बालकनी पर जब वह नजर आईं, तो यह सिर्फ उनकी वापसी नहीं थी, बल्कि तानाशाही के खिलाफ एक जीत का प्रतीक थी। नीचे खड़े समर्थकों की भीड़ 'फ्रीडम, फ्रीडम!' (आजादी, आजादी!) के नारे लगा रही थी और दुनिया देख रही थी कि कैसे उनकी बेटी उनकी तरफ से प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार स्वीकार कर रही थी।

तो आखिर इतने समय तक छिपी क्यों हुई थीं मचाडो?

मारिया कोरीना मचाडो कोई साधारण नेता नहीं हैं, बल्कि वे वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो के शासन के खिलाफ विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा हैं। इसी साल जनवरी 2024 में, एक विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्हें कुछ देर के लिए हिरासत में ले लिया गया था। इसके बाद से उनकी जान को खतरा इतना बढ़ गया था कि उन्हें छिपकर रहना पड़ा। उन्होंने उम्मीद की थी कि वह खुद यह पुरस्कार लेने ओस्लो पहुंच पाएंगी, लेकिन हालात ने इजाजत नहीं दी। उन्होंने फोन पर बताया, "कई लोगों ने अपनी जान जोखिम में डालकर मुझे यहां तक पहुंचाने की कोशिश की।"

"मेरी मां कभी हार नहीं मानेंगी"

ओस्लो में माहौल बेहद भावुक था। जब मचाडो होटल की बालकनी से हाथ हिलाकर अपने समर्थकों का अभिवादन कर रही थीं, तब अंदर उनकी बेटी एना कोरीना सोसा अपनी मां का सम्मान ग्रहण कर रही थीं। एना ने कहा, "मेरी मां एक आजाद वेनेजुएला में जीना चाहती हैं, और वह इसके लिए कभी हार नहीं मानेंगी।"

मचाडो ने पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव में मादुरो को चुनौती देने की पूरी तैयारी की थी, लेकिन सरकार ने उन पर चुनाव लड़ने से ही रोक लगा दी। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और विपक्ष के दूसरे उम्मीदवार एडमंडो गोंजालेज का समर्थन किया, जिन्हें बाद में गिरफ्तारी के डर से स्पेन में शरण लेनी पड़ी।

अपने ही देश में 'हीरो' भी, 'गद्दार' भी

लेकिन अपने देश वेनेजुएला में मचाडो के इस कदम को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है। एक तरफ जहां कराकस की रहने वाली जोसफिना पाज जैसे लोग कहते हैं, "इस महिला ने लोकतंत्र के लिए बहुत बलिदान दिया है। अगर उन्होंने देश छोड़ा है, तो ठीक किया। अब उन्हें अपने परिवार के पास जाकर विदेश से ही अपना संघर्ष जारी रखना चाहिए।"

तो वहीं, जोसे हर्टाडो जैसे दुकानदार उन्हें 'देशद्रोही' कहते हैं, क्योंकि वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की वेनेजुएला नीति का समर्थन करती थीं।

नोबेल कमेटी का राष्ट्रपति मादुरो को कड़ा संदेश

इस पुरस्कार समारोह में सिर्फ मचाडो के समर्थक ही नहीं, बल्कि अर्जेंटीना, इक्वाडोर, पनामा और पराग्वे के राष्ट्रपति भी उनके समर्थन में पहुंचे थे।

नोबेल समिति ने मचाडो को 'असाधारण साहस की मिसाल' बताया और वेनेजुएला को एक "क्रूर और निरंकुश शासन" वाला देश करार दिया। इतना ही नहीं, समिति ने सीधे-सीधे राष्ट्रपति मादुरो को संदेश दिया- "जनता का फैसला मानिए और पद छोड़ दीजिए।"

उनकी बेटी एना ने जब अपनी मां का भाषण पढ़कर सुनाया, तो हर कोई भावुक हो गया। मचाडो ने अपने संदेश में कहा, “यह सम्मान सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि वेनेजुएला के हर उस नागरिक का है जो आजादी के लिए लड़ रहा है। लोकतंत्र पाने के लिए हमें स्वतंत्रता के लिए लड़ने की हिम्मत रखनी होगी।”