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Up Kiran, Digital Desk: देश की सबसे बड़ी अदालत, सुप्रीम कोर्ट, मंगलवार को एक ऐसी शर्मनाक और चौंकाने वाली घटना की गवाह बनी जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। सुनवाई के दौरान, एक वकील ने सीधे भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई की तरफ अपना जूता फेंक दिया।

इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। सबके मन में एक ही सवाल है - आखिर यह शख्स कौन है, और उसने ऐसा क्यों किया?

कौन है यह राकेश किशोर?

नाम: राकेश किशोर सिंह

पेशा: वकील

बैकग्राउंड: राकेश किशोर मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं, लेकिन वह नोएडा में प्रैक्टिस करते हैं। बताया जा रहा है कि वह पहले सीबीआई के लिए भी काम कर चुके हैं।

वह सुप्रीम कोर्ट में कोई जाना-पहचाना या बड़ा नाम नहीं हैं, लेकिन इस एक हरकत ने उन्हें पूरे देश में कुख्यात बना दिया है।

कोर्टरूम में उस दिन क्या हुआ था: मंगलवार को, CJI बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली एक बेंच वकीलों को सीनियर एडवोकेट का दर्जा देने से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी। कोर्टरूम खचाखच भरा हुआ था। तभी, विजिटर गैलरी में बैठा राकेश किशोर अचानक खड़ा हुआ और उसने अपना जूता उतारकर सीधे जजों की बेंच की तरफ फेंक दिया।

किस पर था निशाना? जूता CJI गवई और जस्टिस संदीप मेहता के बीच जाकर गिरा। सौभाग्य से, यह किसी को लगा नहीं।

कोर्ट में मचा हड़कंप: इस घटना से कोर्ट में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। सुरक्षाकर्मी तुरंत हरकत में आए और राकेश किशोर को पकड़कर बाहर ले गए।

क्यों किया ऐसा? पकड़े जाने के बाद, राकेश किशोर जोर-जोर से चिल्लाने लगा और कहने लगा कि उसे न्याय नहीं मिल रहा है। उसका आरोप था कि उसे "कुछ बड़े लोग" सीनियर एडवोकेट बनने से रोक रहे हैं। वह बार-बार 'भाई-भतीजावाद' का आरोप लगा रहा था।

इस हरकत का नतीजा क्या हुआ?

यह सिर्फ एक जूते का मामला नहीं है, यह देश की न्यायपालिका के सर्वोच्च पद के अपमान का मामला है।

'न्यायालय की अवमानना': सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना को बहुत गंभीरता से लिया है। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि यह "कोर्ट पर एक सोचा-समझा हमला" है।

क्या होगी सजा? बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने राकेश किशोर का लाइसेंस तत्काल प्रभाव से रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके अलावा, उस पर न्यायालय की अवमानना का मुकदमा चलेगा, जिसमें उसे जेल भी हो सकती है।

क्या यह सिर्फ एक आदमी का गुस्सा है?

राकेश किशोर की यह हरकत भले ही उसकी व्यक्तिगत हताशा का नतीजा हो, लेकिन यह न्यायपालिका के सामने एक बड़ा सवाल भी खड़ा करती है। यह घटना दिखाती है कि कैसे सिस्टम से निराश एक व्यक्ति कानून की हर मर्यादा को लांघ सकता है।

किसी भी तरह की निराशा या गुस्सा कानून को अपने हाथ में लेने और न्याय के मंदिर का अपमान करने का लाइसेंस नहीं देता। इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए, कम है।