Up kiran,Digital Desk : क्या आप सोच सकते हैं कि अमेरिका में गाड़ियों और फैक्टरियों से निकलने वाला धुआं भारत में किसी की मौत की वजह बन सकता है? हाल ही में हुई एक ग्लोबल स्टडी ने कुछ ऐसे ही हैरान करने वाले तथ्य सामने रखे हैं, जो बताते हैं कि प्रदूषण अब किसी एक देश की समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक हत्यारा बन चुका है।
इस स्टडी के मुताबिक, अकेले अमेरिका से पैदा होने वाला वायु प्रदूषण हर साल भारत में करीब 12,000 और चीन में 38,000 लोगों की जान ले लेता है। इसी तरह, यूरोपीय यूनियन के 27 देशों से निकलने वाले प्रदूषण ने अमेज़न के जंगलों और दक्षिण-पूर्वी अफ्रीका में बाढ़ और सूखे जैसी खतरनाक मौसमी घटनाओं का खतरा लगभग दोगुना कर दिया है।
आखिर एक देश का प्रदूषण दूसरे देश तक पहुंचता कैसे है?
वैज्ञानिकों का कहना है कि हवा किसी देश की सीमा को नहीं मानती। वह अपनी तेज रफ्तार से दुनिया भर में घूमती है और अपने साथ जानलेवा प्रदूषण के कणों को भी ले जाती है।
- हवाई रास्ते से सफर: मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के वैज्ञानिकों के अनुसार, उत्तरी अमेरिका से उठने वाले प्रदूषण के कण जेट-स्ट्रीम (तेज हवाओं) के साथ बहते हुए सीधे एशिया तक पहुंच जाते हैं।
- मानसून बनता है विलेन: इसी तरह, यूरोप का प्रदूषण अफ्रीका के जंगलों तक पहुंचता है। हार्वर्ड के शोधकर्ताओं ने पाया कि जब औद्योगिक देशों से निकले प्रदूषण के महीन कण एशियाई मानसून से टकराते हैं, तो वे भारत और चीन जैसे घनी आबादी वाले इलाकों में जमा हो जाते हैं, जिससे यहां बीमारियां और मौतें बढ़ जाती हैं।
गुनाह कोई करे, सज़ा कोई और भुगते
इस स्टडी का सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि प्रदूषण फैलाने में जिनका हाथ सबसे कम है, वही इसका सबसे भयानक अंजाम भुगत रहे हैं। गरीब और विकासशील देश, जो दुनिया के कुल प्रदूषण में बहुत मामूली हिस्सा रखते हैं, वे ही अमीर देशों की करतूतों का खामियाजा अपनी जान देकर चुका रहे हैं।
दूसरी तरफ, अमीर और औद्योगिक देश हैं, जिनकी आरामदायक जीवनशैली ही प्रदूषण की असली जड़ है, लेकिन वे इसके सबसे बुरे प्रभावों से काफी हद तक बचे हुए हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ केप टाउन के एक विशेषज्ञ इसे सिर्फ मौसम का संकट नहीं मानते, बल्कि वे इसे "सत्ता, उपभोग और अन्याय का एक ढांचा" कहते हैं, जहां अमीर देशों की गलतियों की सजा गरीब देश भुगत रहे हैं।
साफ शब्दों में कहें तो, यह संकट भले ही पूरी दुनिया का है, लेकिन इसकी जिम्मेदारी बराबर नहीं है। अमीर देशों के फैलाए प्रदूषण से पैदा होने वाली आपदाओं का सबसे भारी बोझ उन देशों पर पड़ रहा है, जिनका इस गुनाह में कोई बड़ा हाथ नहीं है। यह सिर्फ पर्यावरण का संकट नहीं, बल्कि न्याय का भी संकट है।
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