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Up Kiran, Digital Desk: क्या आपने कभी सोचा है कि जब आक्रमणकारियों की आँधियाँ उठ रही हों, तब एक राजा कितनी हिम्मत से अपने राज्य की रक्षा करता है? भारतीय इतिहास ऐसे ही वीर योद्धाओं से भरा पड़ा है, लेकिन एक ऐसा नाम है जो सदियों बाद भी हमारे ज़ेहन में ताज़ा है— सम्राट पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan). आज जब भी 'भारत के आखिरी हिंदू सम्राट' की बात आती है, तो 12वीं सदी के इसी चौहान शासक का नाम सबसे पहले ज़ुबान पर आता है. उन्होंने अपने पराक्रम, साहस और सैन्य कौशल से एक ऐसे युग की छाप छोड़ी, जिसकी यादें आज भी भारतीय इतिहास के पन्नों में अमर हैं.

चौहान वंश के प्रतापी राजा: 15 सालों का शौर्यपूर्ण शासन!

पृथ्वीराज चौहान, जिन्हें राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता है, ने साल 1177 ईस्वी से लेकर 1192 ईस्वी तक उत्तर-पश्चिमी भारत के विशाल क्षेत्र पर शासन किया. इस तरह उन्होंने करीब 15 साल तक अपने राज्य को संभाला. अजमेर उनकी राजधानी थी, लेकिन लोक कथाओं में उन्हें दिल्ली का राजा भी माना जाता है. उनका साम्राज्य वर्तमान राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ था.

कम उम्र में ही अजमेर की गद्दी संभालने के बाद, पृथ्वीराज ने अपने कौशल और दृढ़ नेतृत्व का परिचय दिया. उन्होंने कई पड़ोसी राज्यों पर विजय प्राप्त की और अपने साम्राज्य का विस्तार किया. लेकिन उनके शासनकाल का सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक दौर मुहम्मद गोरी के साथ उनके टकराव थे

तराइन के युद्ध: एक ऐतिहासिक मोड़

पृथ्वीराज चौहान ने सन् 1191 में तराइन के पहले युद्ध में मुहम्मद गोरी को एक शानदार शिकस्त दी थी. यह जीत न सिर्फ उनकी सैन्य क्षमता का प्रमाण थी, बल्कि इसने उत्तर भारत में हिंदू शक्ति की एक अंतिम और मज़बूत चुनौती पेश की लेकिन इतिहास का दुर्भाग्य देखिए कि एक साल बाद, 1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में, मुहम्मद गोरी एक बेहतर रणनीति और अधिक संगठित सेना के साथ लौटा. इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हार का सामना करना पड़ा और वे बंदी बना लिए गए. उनकी इस हार ने भारत के राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया और इसके बाद उत्तर भारत में मुस्लिम शासन की शुरुआत हुई

आज भी पृथ्वीराज चौहान का नाम शौर्य, स्वाभिमान और विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ़ अडिग प्रतिरोध का प्रतीक है. उनका जीवन और संघर्ष कविता और लोक कथाओं में अमर हो गया है, जो आज भी हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और अपनी विरासत पर गर्व करने की प्रेरणा देते हैं.