img

Up Kiran, Digital Desk: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार एक ऐसे नाम हैं, जिनकी पहचान न सिर्फ लंबी राजनीतिक पारी से है, बल्कि बार-बार सत्ता में वापसी करने की उनकी ख़ास कला से भी है. उन्हें अक्सर 'सुशासन बाबू' कहा जाता है, और ये उपाधि ऐसे ही नहीं मिली. चलिए, उनके इस अनोखे सियासी सफर को थोड़ा करीब से जानते हैं.

नीतीश कुमार: कैसे एक इंजीनियर बिहार की राजनीति के 'सुशासन बाबू' बन गए?

नीतीश कुमार का सफर 1 मार्च 1951 को बिहार के बख्तियारपुर से शुरू हुआ. उनकी शुरुआती शिक्षा और इंजीनियरिंग की पढ़ाई ये नहीं बताती थी कि एक दिन वो बिहार की राजनीति में इतना गहरा प्रभाव छोड़ेंगे. जेपी आंदोलन ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी, और वो समाज सेवा के रास्ते राजनीति में आ गए. 1985 में पहली बार विधानसभा पहुंचे और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा

जब बिहार को मिला 'सुशासन बाबू'

नीतीश कुमार ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ मार्च 2000 में ली थी. हालांकि, वो कार्यकाल सिर्फ 7 दिनों का था. लेकिन ये तो सिर्फ शुरुआत थी. असली पहचान बनी 2005 के बाद, जब उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर बिहार में सत्ता संभाली. इस बार उन्होंने एक लंबा कार्यकाल पूरा किया और 'सुशासन बाबू' की अपनी छवि को मजबूत किया. बिहार में कानून-व्यवस्था सुधारने और विकास कार्यों को गति देने का श्रेय उन्हें मिला. सड़कों का जाल बिछाया गया, बिजली व्यवस्था सुधरी, और शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी काम हुए

कई बार पलटा पाला, लेकिन कुर्सी पर जमे रहे

नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर गठबंधन बदलने के लिए भी जाना जाता है कभी बीजेपी के साथ, तो कभी आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई. इन बदलती राजनीतिक हवाओं के बीच उन्होंने कई बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. मौजूदा स्थिति को देखें तो नीतीश कुमार 9 से ज्यादा बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं, जो अपने आप में एक बड़ा रिकॉर्ड है हर बार उनके फैसलों ने न सिर्फ बिहार, बल्कि देश की राजनीति में भी सुर्खियां बटोरी हैं.

एक ऐसे नेता जो विरोधियों को भी साधने की कला जानते हैं और वक्त आने पर साहसिक फैसले लेने से नहीं चूकते, वही हैं नीतीश कुमार. उनकी ये लंबी राजनीतिक पारी और बार-बार सत्ता में वापसी, बिहार की राजनीति को समझने वालों के लिए हमेशा दिलचस्प रही है.