
बिहार में हाल के विधानसभा चुनावों में जदयू (जनता दल यूनाइटेड) को अल्पसंख्यक समुदाय का समर्थन नहीं मिल पाया। इसकी वजह से पार्टी की सीटों में गिरावट आई है। नीतीश कुमार के करीबी एक नेता ने इस पर खुलासा किया है।
नीतीश कुमार ने 2024 में महागठबंधन छोड़कर एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) से जुड़ने का फैसला लिया था। इस बदलाव से पार्टी की छवि पर असर पड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय में असमंजस की स्थिति बनी। नीतीश कुमार के करीबी नेता ने बताया कि भाजपा की बढ़ती सक्रियता और नीतीश कुमार का महागठबंधन छोड़ना, अल्पसंख्यकों के बीच असुरक्षा की भावना को बढ़ावा देने का कारण बना। इससे जदयू के पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक में कमी आई।
इसके अलावा, भाजपा ने कुशवाहा, कोरी और कुर्मी जैसे पिछड़ी जातियों को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की, जिससे जदयू का पारंपरिक अतिपिछड़ा वोट बैंक भी प्रभावित हुआ। नीतीश कुमार के करीबी नेता ने माना कि भाजपा की यह रणनीति जदयू के वोट बैंक को कमजोर करने में सफल रही।
हालांकि, जदयू ने कुछ सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि अल्पसंख्यक समुदाय का समर्थन न मिलने से पार्टी की स्थिति कमजोर हुई है। नीतीश कुमार के करीबी नेता ने कहा कि भविष्य में पार्टी को अल्पसंख्यकों के विश्वास को फिर से जीतने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
इस घटनाक्रम ने बिहार की राजनीति में जातीय समीकरणों की अहमियत को एक बार फिर से उजागर किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आगामी चुनावों में इन समीकरणों का प्रभाव महत्वपूर्ण रहेगा।
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