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Up Kiran, Digital Desk: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS को लेकर एक बात हमेशा चर्चा में रही है—तिरंगा झंडा क्यों नहीं फहराया गया उनके नागपुर हेडक्वार्टर पर इतने सालों तक? भले ही अब हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को संघ तिरंगा लहराता है, लेकिन अतीत के इस लंबे खालीपन ने कई सवाल खड़े किए हैं।
सवाल सिर्फ इतना नहीं है कि झंडा क्यों नहीं फहराया गया, बल्कि यह भी कि क्या इसके पीछे कोई मजबूरी थी या सोच? आम लोगों से लेकर विपक्ष तक, सभी इस मुद्दे को लेकर संघ से जवाब मांगते रहे हैं।
जब मोहन भागवत से पूछा गया सीधा सवाल
करीब दो साल पहले, एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में संघ प्रमुख मोहन भागवत से जब ये सवाल पूछा गया, तो उन्होंने एक ऐतिहासिक घटना का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि 1933 में कांग्रेस के एक कार्यक्रम में जब झंडा अटक गया था, तो संघ का एक स्वयंसेवक खंभे पर चढ़कर उसे ठीक करने पहुंच गया। पंडित नेहरू भी उस युवक के साहस से प्रभावित हुए थे।
भागवत ने यह कहकर सफाई दी कि संघ राष्ट्रध्वज का सम्मान हमेशा करता आया है और देश के लिए मर-मिटने वालों की पहली कतार में होता है। लेकिन असली सवाल यह है कि फिर भी नागपुर स्थित मुख्यालय पर झंडा फहराने में इतना वक्त क्यों लगा?
थ्योरी 1: कानून का बंधन या बहाना?
पहली थ्योरी के मुताबिक, आज़ादी के बाद देश में एक समय ऐसा था जब आम लोगों को तिरंगा फहराने की खुली छूट नहीं थी। उस समय के नियमों के तहत, प्राइवेट संस्थाएं या संगठन अपने मुख्यालयों पर राष्ट्रध्वज नहीं लहरा सकते थे।
2002 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद यह कानून बदला गया और ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया’ में संशोधन हुआ। इसके तहत अब आम नागरिक भी अपने घरों, कार्यालयों और संगठनों में तिरंगा फहरा सकते हैं। संघ ने इसी फैसले के बाद 26 जनवरी 2002 को पहली बार नागपुर में तिरंगा फहराया।
संघ समर्थकों का मानना है कि आरएसएस ने कानून का पालन करते हुए झंडा नहीं फहराया, ना कि देशभक्ति में कोई कमी दिखाई।
थ्योरी 2: फिर स्कूलों में झंडा कैसे लहराया जाता था?
दूसरी थ्योरी कुछ और ही कहानी बताती है। बहुत से लोगों को याद है कि 1990 के दशक से पहले भी स्कूलों में 15 अगस्त और 26 जनवरी पर ध्वजारोहण होता था, फिर चाहे वो सरकारी स्कूल हों या प्राइवेट।
तो सवाल उठता है कि अगर उस समय कानून इतना सख्त था, तो फिर स्कूलों को कैसे इजाजत मिली?
यहां पर आता है नवीन जिंदल का नाम। उन्होंने 1995 में दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर इस मुद्दे को उठाया था, जब उन्हें अपनी फैक्टरी में तिरंगा फहराने से रोका गया था।
इसके बाद PD शिनॉय कमेटी की सिफारिशों के आधार पर 15 जनवरी 2002 को सरकार ने कानून बदला और 26 जनवरी 2002 से यह नया नियम लागू कर दिया गया।