
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया को उस वक्त चौंका दिया जब उन्होंने अचानक अपनी टैरिफ पॉलिसी पर 90 दिन का ब्रेक देने की घोषणा कर दी। इस अस्थायी राहत ने न केवल भारतीय शेयर बाजार को मजबूती दी, बल्कि वैश्विक बाज़ारों में भी नई जान फूंक दी। मगर क्या ये स्थायी समाधान है? बिल्कुल नहीं।
ट्रंप का ये नीतिगत पलटाव (U-turn) असल में कई आर्थिक दबावों का नतीजा है। आइए जानते हैं कि इस ब्रेक के पीछे कौन-से तीन बड़े कारण हैं जो उन्हें वैश्विक बाज़ारों के सामने झुकने पर मजबूर कर गए:
पहली वजह
बाजारों में गिरावट के चलते अमेरिका में नकदी की तंगी महसूस की जाने लगी। टैरिफ से आयात महंगे हो गए, जिससे घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ने लगीं। इस बढ़ती महंगाई के दबाव ने ट्रंप प्रशासन को पीछे हटने पर मजबूर किया।
दूसरी वजह
टैरिफ के बाद निर्यात घटने से अमेरिकी डॉलर पर दबाव बढ़ा और कर्ज चुकाने की क्षमता प्रभावित हुई। अमेरिका को अपना व्यापार संतुलन संभालना मुश्किल हो गया। आमदनी और कर्ज का असंतुलन इतना बढ़ा कि नीति बदलना ट्रंप के लिए मजबूरी बन गया।
तीसरी वजह
ट्रंप चाहते थे कि यूएस फेड ब्याज दरों में कटौती करे ताकि आर्थिक दबाव कम हो, मगर फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने महंगाई रोकने को प्राथमिकता दी। टैरिफ से महंगाई और बढ़ने के डर ने फेड को सख्त बना दिया और ट्रंप को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ा।