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एक समय था जब एशले टेलिस का नाम भारत-अमेरिका दोस्ती की सबसे मजबूत आवाजों में गिना जाता था. भारतीय मूल के इस रणनीतिकार को भारत-अमेरिका परमाणु समझौते का एक प्रमुख सूत्रधार माना जाता था. लेकिन आज वही एशले टेलिस अपने बदले हुए सुरों की वजह से चर्चा में हैं. कहा जा रहा है कि जो व्यक्ति कभी भारत के विजन का प्रबल समर्थक था, आज उसी के खिलाफ खड़ा नजर आ रहा है.

कौन हैं एशले टेलिस: मुंबई में पले-बढ़े एशले टेलिस आज अमेरिका के सबसे सम्मानित रणनीतिकारों में से एक हैं. जॉर्ज डब्ल्यू बुश के प्रशासन में उन्होंने एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में काम किया और भारत के साथ ऐतिहासिक परमाणु समझौते को हकीकत में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उस दौरान, उन्हें भारत का एक ऐसा दोस्त माना जाता था जो वाशिंगटन में भारत के हितों की वकालत करता था.

कैसे और क्यों बदले टेलिस के सुर?

हाल के दिनों में टेलिस के विचारों में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है. वह अब भारत की विदेश नीति, खासकर 'आत्मनिर्भरता' और 'गुटनिरपेक्षता' की रणनीति के एक बड़े आलोचक के रूप में उभरे हैं.

चीन के मुद्दे पर भारत से निराशा: टेलिस का मानना है कि अमेरिका भारत का समर्थन इसलिए कर रहा है ताकि वह चीन के खिलाफ एक मजबूत दीवार बनकर खड़ा हो सके. लेकिन उन्हें निराशा है कि भारत, अमेरिका का एक वफादार सहयोगी बनने के बजाय, अपने खुद के हितों को प्राथमिकता दे रहा है. वह चाहते हैं कि भारत खुलकर अमेरिकी खेमे में शामिल हो.

"भारत सिर्फ अपने लिए खेलता है": अपने एक हालिया लेख में उन्होंने लिखा है कि भारत, अमेरिका का सहयोगी नहीं है और न ही बनना चाहता है. वह सिर्फ अपने उदय पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. टेलिस का तर्क है कि भारत अमेरिका से फायदा तो उठाना चाहता है, लेकिन चीन के खिलाफ अमेरिकी लड़ाई में उसका साथ नहीं देना चाहता.

क्वाड (Quad) को लेकर शंका: वह 'क्वाड' (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का गठबंधन) के भविष्य को लेकर भी आशंकित हैं. उनका मानना है कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है, तो भारत, अमेरिका की मदद के लिए आगे नहीं आएगा, जिससे यह गठबंधन कमजोर हो जाएगा.

क्या है इस बदलाव की वजह: विशेषज्ञों का मानना ​​है कि टेलिस का यह मोहभंग इस बात से उपजा है कि भारत अब अमेरिकी उम्मीदों के हिसाब से नहीं चल रहा है. भारत आज अपनी एक स्वतंत्र विदेश नीति पर चल रहा है, जहाँ वह रूस से तेल भी खरीदता है और अमेरिका के साथ रक्षा सौदों पर भी हस्ताक्षर करता है. भारत किसी एक गुट में बंधने के बजाय 'सबका दोस्त' बनना चाहता है. टेलिस जैसे अमेरिकी रणनीतिकार भारत के इस रुख से असहज हैं.

एशले टेलिस का यह बदलाव भारत के लिए एक सबक है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता, सिर्फ स्थायी हित होते हैं.