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Up Kiran, Digital Desk: आज के भागदौड़ भरे जीवन में हृदय रोग एक सामान्य लेकिन गंभीर समस्या बनती जा रही है। खान-पान की आदतों, तनाव, और बिगड़ी हुई जीवनशैली के कारण कई बार हम अनजाने में ही अपने दिल को खतरे में डाल रहे होते हैं। इन्हीं बीमारियों में से एक है क्रॉनिक हार्ट फेलियर एक ऐसी स्थिति जिसमें दिल शरीर की जरूरत के हिसाब से पर्याप्त मात्रा में खून नहीं पंप कर पाता। यह कोई अचानक होने वाली घटना नहीं है, बल्कि एक धीमी प्रक्रिया है, जो चुपचाप शरीर को अंदर से खोखला करती जाती है।
लक्षण: जब शरीर देना शुरू करता है संकेत
क्रॉनिक हार्ट फेलियर की शुरुआत अक्सर बिना किसी खास लक्षण के होती है, इसलिए लोग इसे अक्सर सामान्य कमजोरी या थकान मानकर नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन जैसे-जैसे दिल की कार्यक्षमता घटती है, वैसे-वैसे लक्षण भी स्पष्ट होने लगते हैं:
दिनभर थकान और कमजोरी
पैरों, टखनों और पंजों में सूजन
रात में बार-बार पेशाब आना
सांस फूलना, खासकर लेटते समय या चलने पर
सीने में दबाव या जकड़न
धड़कनों का अनियमित होना
इनमें से कोई भी लक्षण दिखे, तो बिना देरी के हृदय रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें।
क्या पुरुषों को होता है ज्यादा खतरा?
आम धारणा है कि हार्ट फेलियर पुरुषों में ही ज्यादा होता है, लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं है। बीएलके हार्ट सेंटर, नई दिल्ली के कार्डियक सर्जरी प्रमुख डॉ. अजय कौल के अनुसार, 45 की उम्र से पहले यह समस्या पुरुषों में अपेक्षाकृत अधिक देखी जाती है और इस उम्र तक पुरुष:महिला अनुपात 7:3 रहता है। लेकिन 50 की उम्र के बाद यह अंतर लगभग समाप्त हो जाता है। यानी उम्र बढ़ने के साथ महिलाएं भी बराबर जोखिम में आ जाती हैं।
क्रॉनिक हार्ट फेलियर के चरण और इलाज
इस रोग को चार मुख्य चरणों (Type 1 से Type 4) में बांटा गया है:
Type 1: शुरुआती अवस्था, जिसमें दवाओं से स्थिति नियंत्रित की जा सकती है।
Type 2 और 3: दिल की क्षमताओं में गिरावट आ जाती है, और कई बार सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है।
Type 4: सबसे गंभीर अवस्था, जब हृदय 85-90% तक काम करना बंद कर देता है। ऐसे में केवल हार्ट ट्रांसप्लांट ही विकल्प बचता है।
डॉ. कौल बताते हैं कि यदि हृदय 50% तक क्षतिग्रस्त हो चुका हो, तो भी समय पर इलाज से सामान्य जीवन संभव है। लेकिन 65% से अधिक नुकसान की स्थिति में स्थिति गंभीर हो जाती है।