Up kiran,Digital Desk : एक वक्त था जब फिल्मों में हीरोइन का रोल हीरो के इर्द-गिर्द ही घूमता था. कहानी का पूरा बोझ हीरो के कंधों पर होता था और एक्ट्रेस सिर्फ ग्लैमर बढ़ाने या गानों में डांस करने के लिए होती थीं. लेकिन अब जमाना बदल गया है और इस बदलाव का सबसे बड़ा श्रेय ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को जाता है. इसी मुद्दे पर हाल ही में बॉलीवुड की दो दमदार एक्ट्रेस शेफाली शाह और हुमा कुरैशी ने खुलकर बात की.
इंडियन एक्सप्रेस के खास शो 'एक्सप्रेसो' में हिस्सा लेने पहुंचीं इन दोनों अभिनेत्रियों ने बताया कि कैसे नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने महिला कलाकारों के लिए अवसरों के नए दरवाजे खोल दिए हैं. अब उन्हें ऐसे किरदार निभाने को मिल रहे हैं जो कहानी के केंद्र में होते हैं और दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ते हैं.
अब दर्शक महिला-केंद्रित कहानियां देखना चाहते हैं हुमा कुरैशी
हुमा कुरैशी ने इस बातचीत में कहा कि ओटीटी ने उन कहानियों को मंच दिया है जिन्हें पहले कोई बनाने की हिम्मत नहीं करता था. उन्होंने कहा, "अब वो पुरानी सोच खत्म हो रही है कि सिनेमाघरों में सिर्फ हीरो वाली फिल्में ही चलेंगी. ओटीटी ने यह साबित कर दिया है कि यहां एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग है जो अच्छी कहानी देखना चाहता है, चाहे उसे कोई महिला सुना रही हो या पुरुष."
उन्होंने अपनी हिट वेब सीरीज 'महारानी' और शेफाली की 'दिल्ली क्राइम' का उदाहरण देते हुए कहा, "इन शोज को सिर्फ महिलाओं ने नहीं, बल्कि हर किसी ने देखा है. आज अगर 'दिल्ली क्राइम' जैसी कहानी पर फिल्म बने, तो लोग उसे देखने सिनेमाघरों में जरूर जाएंगे."
शेफाली शाह ने भी जताई सहमति
हुमा की बात को आगे बढ़ाते हुए शेफाली शाह ने कहा, "ओटीटी ने सच में बहुत कुछ बदला है. आज ऐसी-ऐसी कहानियां और किरदार लिखे जा रहे हैं जिनके बारे में पहले कोई सोच भी नहीं सकता था. इंडस्ट्री में कई ऐसे प्रतिभाशाली लोग थे जिन्हें काम करने का मौका नहीं मिलता था, लेकिन अब ओटीटी की वजह से उन्हें अपनी काबिलियत दिखाने का मंच मिला है."
छोटे बजट की फिल्मों का दर्द
हालांकि, इस बातचीत में हुमा ने छोटे बजट की फिल्मों के सामने आ रही मुश्किलों पर भी बात की. उन्होंने अपनी फिल्म 'सिंगल सलमा' का उदाहरण देते हुए कहा, "हमारी फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज तो हुई, लेकिन बहुत कम लोग उसे देख पाए. न तो उसका कोई प्रचार हुआ और न ही कोई चर्चा हुई. मेकर्स को लगा कि फिल्म बाद में ओटीटी पर तो आ ही जाएगी, तो थिएटर में ज्यादा मेहनत क्यों करनी. मुझे लगता है कि यह सोच इंडस्ट्री के लिए बहुत नुकसानदायक है, क्योंकि हमेशा से छोटी और मीडियम बजट की फिल्मों ने ही सिनेमा को जिंदा रखा है."
साफ है कि जहां एक तरफ ओटीटी ने महिला कलाकारों और नए टैलेंट को उड़ान भरने के लिए खुला आसमान दिया है, वहीं दूसरी तरफ इसने छोटी फिल्मों के लिए सिनेमाघरों में टिके रहना और भी मुश्किल बना दिया है.
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