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हम दिन भर स्मार्टफोन, लैपटॉप, स्मार्ट टीवी और कारों का इस्तेमाल करते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि इन सभी इलेक्ट्रॉनिक चीजों का 'दिमाग' क्या होता है? यह दिमाग होती एक छोटी सी 'चिप', जिसे सेमीकंडक्टर कहते हैं। अभी तक इस दिमाग के लिए भारत दूसरे देशों, जैसे ताइवान, दक्षिण कोरिया और चीन पर निर्भर रहा है। लेकिन अब भारत इस कहानी को बदलने की तैयारी कर रहा है।

सरकार ने यह समझ लिया है कि अगर हमें सच में एक технологическая superpower बनना है, तो हमें यह चिप खुद अपने देश में बनानी होगी। इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए 'इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन' पर तेजी से काम हो रहा ।

सिर्फ फैक्ट्री लगाना काफी नहीं है

लेकिन सिर्फ अरबों डॉलर लगाकर बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां खड़ी कर देना ही काफी नहीं है। उन फैक्ट्रियों को चलाने के लिए, चिप को डिजाइन करने के लिए, और नई टेक्नोलॉजी पर रिसर्च करने के लिए हमें लाखों हुनरमंद इंजीनियरों और रिसर्चरों की जरूरत पड़ेगी। इसी को 'वर्कफोर्स डेवलपमेंट' कहते हैं, और यही सरकार का असली फोकस है।

युवाओं के लिए खुल रहे हैं नए दरवाजे

इस मिशन को सफल बनाने के लिए सरकार विश्वविद्यालयों और बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही है। इसका मकसद है:

रिसर्च को बढ़ावा देना: भारत के टॉप इंजीनियरिंग कॉलेजों में ऐसी लैब बनाई जा रही हैं जहां छात्र और प्रोफेसर चिप डिजाइनिंग की नई तकनीकों पर रिसर्च कर सकें।

नए कोर्स शुरू करना: कॉलेजों में सेमीकंडक्टर डिजाइन और मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े नए कोर्स शुरू किए जा रहे हैं, ताकि छात्रों को वह ज्ञान मिल सके जिसकी इंडस्ट्री में मांग है।

ट्रेनिंग प्रोग्राम: युवाओं को इस फील्ड में काम करने के लिए खास ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि वे इंडस्ट्री के लिए पहले दिन से ही तैयार हों।

यह पहल सीधे तौर पर भारत के युवाओं के लिए लाखों नई नौकरियों के अवसर पैदा करेगी। यह सिर्फ इंजीनियरों के लिए ही नहीं, बल्कि डिजाइनरों, तकनीशियनों और शोधकर्ताओं के लिए भी एक सुनहरा मौका होगा।