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देश में तीन‑भाषा नीति (थ्री‑लैंग्वेज पॉलिसी), जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP‑2020) के तहत लागू की गई थी, तमिलनाडु और अब महाराष्ट्र में राजनीतिक विवाद का विषय बनी हुई है। इसका उद्देश्य था कि वर्ग‑1 से बच्चे अपनी मातृभाषा के साथ एक अन्य भारतीय भाषा (जैसे हिंदी) और अंग्रेजी सीखें।

तमिलनाडु में मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने कहते हुए इसे “हिंदी थोपने” की कोशिश बताया। उन्होंने केंद्र सरकार पर राज्यों को विरोधी नीति अपनाने पर शिक्षा फंड रोकने का आरोप लगाया। स्टालिन ने स्पष्ट कहा कि तमिलनाडु तीन‑भाषा नीति कभी स्वीकार नहीं करेगा  । इसके साथ ही, डीएमके ने विपक्षी पार्टियों को आरोपित भाजपा पर हमला बोला कि वह तमिल पहचान और राजनीति को कमजोर करने की राजनीति कर रही है  ।

महाराष्ट्र में भी हालात गर्म हैं। अप्रैल‑2025 में राज्य सरकार ने कक्षा 1 से हिंदी को तीसरी भाषा बनाकर थ्री‑लैंग्वेज लागू करने की GR जारी की। लेकिन मनसे के राज ठाकरे, शिवसेना (उद्धव गुट) और कांग्रेस‑NCP समेत कई दलों ने इसे मराठी संस्कृति पर हमला बताया  । जनता ने GR जलाकर विरोध जताया। विरोध इतना तेज था कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 29 जून 2025 को इन आदेशों को रद्द कर दिया  ।

फडणवीस ने बताया कि यह फैसला “माराठी‑सेंट्रिक” नीति को बचाते हुए उठाया गया और अब छात्रों के हित में अंग्रेजी व हिंदी के साथ एक संतुलित भाषा नीति पर विचार करने समिति बनाई जाएगी  । उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने 5 जुलाई को प्रस्तावित विरोध प्रदर्शन रद्द करने की भी बात कही  ।

  क्यों सियासत की चपेट में?

भू‑राजनीतिक पहचान: तमिलनाडु में द्रविड़ विचारधारा शक्ति बन गई है, मराठी‑प्रेम महाराष्ट्र में संवेदनशील मुद्दा बन गया है।

चुनावी भाईचारा: सियासी दल ‘भाषा‑अस्मिता’ को चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।

केंद्र‑राज्य टकराव: शिक्षा फंड और नीति को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों में संघर्ष की स्थिति स्पष्ट दिख रही है।

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