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Up Kiran, Digital Desk: भारतीय सिनेमा के लिए यह एक बड़ा और गर्व का क्षण है, लेकिन साथ ही यह एक गंभीर आत्म-मंथन का भी समय है। एसएस राजामौली की अध्यक्षता वाली 17 सदस्यीय जूरी ने फिल्म 'होमबाउंड' (Homebound) को 98वें अकादमी पुरस्कार (ऑस्कर) 2026 के लिए 'सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म' श्रेणी में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना है। लेकिन यह सिर्फ एक फिल्म नहीं है; यह इतिहास का वह दर्दनाक पन्ना है जिसे अक्सर भुला दिया जाता है या जिस पर खुलकर बात करने से बचा जाता है।

यह फिल्म 1990 के दशक में कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों के दर्दनाक और क्रूर पलायन की कहानी पर आधारित है। यह उस दौर की भयावहता, पीड़ा और उस बेबसी को पर्दे पर लाती है, जब लाखों लोगों को रातों-रात अपनी ही जमीन, अपने ही घर को छोड़कर शरणार्थी बनने पर मजबूर कर दिया गया था।

'होमबाउंड' का ऑस्कर के लिए चुना जाना एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि यह उस त्रासदी को एक वैश्विक मंच पर रखता है, जिसे अक्सर केवल एक क्षेत्रीय या राजनीतिक मुद्दे के रूप में देखा जाता रहा है। यह फिल्म दुनिया को उस नरसंहार की याद दिलाएगी, उन अनकहे घावों को कुरेदेगी, जिन पर तीन दशकों से भी ज्यादा समय से धूल जमी हुई है।

यह फिल्म एक समुदाय की उस पीड़ा को आवाज देती है जो अपने ही देश में न्याय और मान्यता के लिए संघर्ष कर रहा है। 'होमबाडेंट' सिर्फ मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह भारत को अपने इतिहास के एक ऐसे काले अध्याय का सामना करने पर मजबूर करती है जिससे हम अक्सर नजरें चुराते रहे हैं।

फिल्म का चयन उस समय हुआ है जब भारत में इस विषय पर बातचीत पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो गई है। ऑस्कर की इस रेस में शामिल होकर, 'होमबाउंड' अब केवल एक फिल्म नहीं रही, बल्कि यह उन लाखों भूले-बिसरे चेहरों की कहानी बन गई है जो आज भी अपने घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं। अब देखना यह है कि क्या भारत की यह आवाज ऑस्कर के मंच पर दुनिया का दिल जीत पाती है या नहीं।