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Up Kiran, Digital Desk: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तेलंगाना सरकार के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से साफ इनकार कर दिया, जिसमें स्थानीय निकाय चुनावों में पिछड़ा वर्ग (BC) के लिए आरक्षण को बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दिया गया था।

क्या था पूरा मामला: तेलंगाना सरकार ने एक सरकारी आदेश (G.O.) जारी करके स्थानीय निकाय चुनावों में पिछड़ा वर्ग के लिए 42% आरक्षण तय कर दिया था। याचिकाकर्ता ने इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

याचिका में यह दलील दी गई थी कि यह फैसला आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है। राज्य में पहले से ही अनुसूचित जाति (SC) के लिए 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण लागू है। अब पिछड़ा वर्ग का कोटा 42 प्रतिशत हो जाने से कुल आरक्षण 67 प्रतिशत से भी ज्यादा हो गया है, जो कि पूरी तरह से असंवैधानिक है।

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि तेलंगाना पंचायत राज अधिनियम, 2018 में भी यह साफ लिखा है कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लौटा दी याचिका?

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने याचिकाकर्ता से पूछा कि जब इस मामले से जुड़ी याचिकाएं पहले से ही तेलंगाना हाई कोर्ट में लंबित हैं और बुधवार को उन पर सुनवाई होनी है, तो वे सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आ गए?

कोर्ट ने एक तरह से नाराजगी जताते हुए कहा, "अगर तेलंगाना हाई कोर्ट आपको स्टे नहीं देता, तो क्या आप सीधे अनुच्छेद 32 के तहत यहां आ जाएंगे?"

सुप्रीम कोर्ट का रुख देखकर याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने और हाई कोर्ट जाने की अनुमति मांगी, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।

क्या सरकार ने नियमों का पालन नहीं किया?

याचिका में यह भी आरोप लगाया गया था कि तेलंगाना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित "ट्रिपल टेस्ट" की शर्तों का पालन नहीं किया है। इस टेस्ट के अनुसार, स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण लागू करने से पहले सरकार को एक समर्पित आयोग बनाकर पिछड़ा वर्ग की आबादी का आंकड़ा जुटाना होता है और उसी के आधार पर आरक्षण तय किया जाता है, लेकिन यह सब 50 प्रतिशत की सीमा के अंदर होना चाहिए।

आरोप है कि सरकार ने सिर्फ एक सदस्यीय आयोग की रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला ले लिया, जिसे न तो सार्वजनिक किया गया और न ही विधानसभा में उस पर कोई बहस हुई।

अब इस मामले की सुनवाई तेलंगाना हाई कोर्ट में होगी और देखना यह होगा कि स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण पर अदालत का क्या फैसला आता है।